‘भारत से आए मुहाजिरों की आखिरी उम्मीद आप, उन्हें बचाइए’, PAK नेता अल्ताफ हुसैन ने PM मोदी से क्यों लगाई गुहार?
पाकिस्तान के निर्वासित नेता और मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट (MQM) के संस्थापक अल्ताफ हुसैन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से एक ऐसी गुहार लगाई है जिसने भारत-पाकिस्तान के तनावपूर्ण रिश्तों में एक नया मोड़ पैदा कर दिया है। हुसैन ने अपने लाइव संबोधन में पीएम मोदी से पाकिस्तान में रह रहे भारतीय मूल के मुहाजिरों को बचाने की अपील की है, जिन्हें वहां "दूसरे दर्जे का नागरिक" बना दिया गया है। उन्होंने आरोप लगाया कि पाकिस्तानी सेना ने इन मुहाजिरों के साथ 61 साल से अत्याचार किया है। इसके अंतर्गत 25,000 से ज्यादा युवाओं की हत्या, हजारों का जबरन गायब होना और सिस्टमैटिक शोषण जैसे अत्याचारों को अंजाम दिया है। लेकिन सवाल यह है कि क्या भारत इसमें हस्तक्षेप करेगा?
कौन हैं मुहाजिर?
मुहाजिर वे लोग हैं जिन्होंने 1947 के विभाजन के बाद भारत छोड़कर पाकिस्तान का रुख किया था, खासकर उत्तर प्रदेश, बिहार और दिल्ली से लोग कराची, सिंध और लाहौर जैसे शहरों में बस गए। ये ज्यादातर उर्दूभाषी थे और पाकिस्तान के शहरी इलाकों में शिक्षा, व्यापार और प्रशासन में अहम योगदान दिया।
लेकिन आज यही समुदाय पाकिस्तान में सबसे ज्यादा प्रताड़ित है। अल्ताफ हुसैन के मुताबिक, इन्हें आज तक पाकिस्तानी नागरिकता का पूरा अधिकार नहीं मिला है, नौकरियों और शिक्षा में भेदभाव झेलना पड़ता है, और सेना इनके खिलाफ हिंसा को बढ़ावा देती है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या भारत की जिम्मेदारी बनती है कि वह इन लोगों की मदद करे?
मुहाजिरों पर पाकिस्तानी सेना के क्रूर अत्याचार
अल्ताफ हुसैन ने पाकिस्तानी सेना पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि मुहाजिरों को सिस्टमैटिक तरीके से निशाना बनाया गया है। उनके दावे के मुताबिक, पिछले छह दशकों में 25,000 से ज्यादा मुहाजिर युवाओं को मार दिया गया, हजारों को उनके परिवारों के सामने से उठाकर गायब कर दिया गया, और आज भी उनका कोई अता-पता नहीं है। हुसैन ने कहा कि "मुहाजिरों की आवाज दबा दी जाती है। जो भी उनके हक में बोलता है, उसे सेना का कोपभाजन बनना पड़ता है।" यहां तक कि MQM जैसी पार्टियों पर भी कई बार सैन्य कार्रवाई की जा चुकी है। क्या यह पाकिस्तान की उस मानसिकता को दिखाता है जो भारतीय मूल के लोगों को हमेशा शक की नजर से देखती है?
क्या भारत को करना चाहिए हस्तक्षेप?
अल्ताफ हुसैन ने अपने संबोधन में पीएम मोदी की तारीफ करते हुए कहा कि उनका बलूच समुदाय के प्रति सहानुभूतिपूर्ण रुख "साहस और नैतिकता" का उदाहरण है। हुसैन ने मोदी से अपील की कि वे मुहाजिरों की सुरक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आवाज उठाएं। लेकिन सवाल यह है कि क्या भारत सरकार ऐसा करेगी? क्या यह पाकिस्तान के आंतरिक मामलों में दखल माना जाएगा? विदेश मंत्रालय ने अभी तक इस मामले पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन यह स्पष्ट है कि अगर भारत ने इस मुद्दे को उठाया, तो यह पाकिस्तान के लिए एक बड़ी शर्मिंदगी होगी।
क्या मुहाजिर पाकिस्तान की बर्बरता का शिकार होते रहेंगे?
अल्ताफ हुसैन की यह अपील सिर्फ एक भावुक पुकार नहीं, बल्कि पाकिस्तान में मानवाधिकारों के हनन का एक गंभीर मुद्दा है। अगर भारत इस मामले में आगे आता है, तो यह न सिर्फ मुहाजिरों के लिए एक उम्मीद की किरण होगी, बल्कि पाकिस्तान की क्रूर नीतियों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उजागर करने का मौका भी मिलेगा। लेकिन क्या भारत की मोदी सरकार इस जोखिम को उठाएगी? या फिर यह मामला अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों तक ही सीमित रहेगा? एक बात तय है कि मुहाजिरों का दर्द विभाजन की त्रासदी का वह पहलू है जिस पर दुनिया ने कभी गंभीरता से नहीं सोचा। अब वक्त आ गया है कि इस पर बहस हो!
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