नेशनलराजनीतिमनोरंजनखेलहेल्थ & लाइफ स्टाइलधर्म भक्तिटेक्नोलॉजीइंटरनेशनलबिजनेसआईपीएल 2025चुनाव

Yoga: योग का अर्थ है स्वयं में ईश्वर को खोजना, बता रहे हैं योगाचार्य

योगाचार्य कंदर्प शर्मा के अनुसार, हर व्यक्ति अपने स्वभाव अनुसार मार्ग चुन सकता है।
01:02 PM Sep 08, 2025 IST | Preeti Mishra
योगाचार्य कंदर्प शर्मा के अनुसार, हर व्यक्ति अपने स्वभाव अनुसार मार्ग चुन सकता है।
Yoga

Yoga: ओम स्वरूपाय नमः। योग मार्ग इश्वर में स्वयं को खोजना। अहं ब्रह्मास्मि- स्थूल रूप में सुक्ष्म का अनुबह्व करना। इश्वर सत्य चित आनंद स्वरुप है, ईश्वर सच्चिदानंद है। मैं वही (Yoga) आनंद स्वरुप हूँ, इसकी अनुभूति करना ही योग है।

योगाचार्य कंदर्प शर्मा के अनुसार, हर व्यक्ति अपने स्वभाव अनुसार मार्ग चुन सकता है। योग के किसी भी मार्ग को अपनाकर, यह जानना कि मैं कौन हूँ, क्या हूँ, जीवन क्या है? आदि प्रश्नों की खोज। मनुष्य के जीवन का मुख्य लक्ष्य है पुर्णता को (Yoga) प्राप्त करना, आत्मज्ञान का अनुभव करना, अर्थात हम प्रेम स्वरुप हैं, पूर्ण हैं, आंनद स्वरुप हैं इसकी अनुभूति हर समय करना।

योगाचार्य बताते हैं कि जिस प्रकार सभी नदियां, अलग-अलग मार्ग से महासागर में मिल जाती हैं, उसी प्रकार विधियों का एक ही लक्ष्य है, अपने मूल को जानना, अपने स्वरुप को जानना, आत्मज्ञान प्राप्त करना। इन अनुभव को प्राप्त करने के लिए विभिन्न अवतारों, ऋषियों, संतों ने अलग-अलग मार्ग प्रतिपादित किये हैं। उनमें से कुछ मार्गों को संक्षेप में समझने का प्रयास करते हैं।

योगाचार्य कंदर्प शर्मा

पहला, राज योग अथवा अष्टांग योग

इसके प्रणेता महान ऋषि पतंजलि ने कहा, योगश चित्त वृत्ति निरूद- चित्त की वृत्तियों का सर्वथा रूक जाना अर्थात मन में उठने वाले विचारों का रुक जाना और दृष्टा, फापुरिष्ट, स्वयं को पुनः पहचान लेना, अनुभव करना और आत्म साक्षात्कार करना। महृषि पतंजलि ने चित्त की वृत्तियों का शमन करने के लिए योगसूत्र जो अष्टांग योग के नाम से प्रसिद्ध है, प्रतिपादित किया।

क्या है अष्टांग योग?

अष्टांग का अर्थ है आठ अंग, और ये आठ अंग पतंजलि के योग सूत्रों में वर्णित योग मार्ग के मूलभूत सिद्धांत हैं:

यम: नैतिक कर्म
नियम: व्यक्तिगत अनुशासन
आसन: शारीरिक व्यायाम और आसान
प्राणायाम: श्वास और प्राण पर नियंत्रण
प्रत्याहार: इंद्रियों को बाहरी वस्तुओं से हटाकर आंतरिक एकाग्रता की ओर ले जाना।
धारणा: मन को किसी एक बिंदु पर केंद्रित करना।
ध्यान: मन को उस केंद्रित बिंदु पर स्थिर रखना।
समाधि: सर्वोच्च अवस्था जहाँ व्यक्ति ब्रह्मांडीय चेतना के साथ एकाकार हो जाता है।

क्या है दूसरा मार्ग?

दूसरा मार्ग है ज्ञान योग। इसके प्रणेता आदि शंकराचार्य हैं। यह मार्ग सहज ज्ञान और जागरूकता के साथ मन को विकसित करने का मार्ग है। इसके तीन मुख्य चरण हैं:

श्रवण-सुनना
मनन- जो सुना है उसकी समीक्षा करना, और
निदिध्यासन: मनन किए गए ज्ञान को गहराई से आत्मसात करना और उस पर लगातार ध्यान केंद्रित करना।

क्या है तीसरा मार्ग?

तीसरा मार्ग है कर्म योग। भगवतगीता इस मार्ग का मुख्य आधार है। फल की चिंता किये बिना, निश्वार्थ भाव से हमें मिले हर कार्य को पूरी क्षमता से करना। पूर्ण सेवा से कार्य को पूर्ण करना।

क्या है चौथा मार्ग?

चौथा मार्ग है भक्ति योग। इस मार्ग का उद्देश्य व्यक्ति को भावनात्मक रूप से परिपक्व बनाना है। जब हमारी भावनाएं एक दिशा में बहती हैं तो वो भक्ति है। अर्थात बिना किसी शर्त के सभी जीवों के प्रति प्रेम। पौराणिक काल में महृषि नारद और आधुनिक काल में रामानुज भक्ति के प्रमुख अनुयायी रहे हैं।

योगाचार्य कंदर्प शर्मा बताते हैं कि हम अपनी इच्छा और स्वभाव के अनुसार किसी भी मार्ग को अपनाकर उसका अभ्यास दैनिक रूप से कर सकते हैं। सभी का अंतिम लक्ष्य एक ही है-प्रेम, शांति, आनंद और पूर्णता को प्राप्त करना।

यह भी पढ़ें: Yoga Timing: कब करना चाहिए योग, कौन सा समय होता है सबसे उपयुक्त? जानें योगाचार्य से

Tags :
Daily yoga routineHow to do YogaImportance of yoga in lifeMeaning of YogaOnline yoga sessions by Kandarp SharmaTraditional yoga by Kandarp SharmaYogayoga and mental healthYoga benefits for healthYoga by Yogcharya Kandarp SharmaYogacharya Kandarp SharmaYogcharya Kandarp Sharma yoga classes

ट्रेंडिंग खबरें

Next Article