Yogic Food: कैसा होना चाहिए योगाभ्यासी का आहार, जानें योगाचार्य कंदर्प शर्मा से
Yogic Food: योग के फ़ायदों को बढ़ाने में डाइट और टाइमिंग का बहुत ज़रूरी रोल होता है। खाली या हल्के भरे पेट योग करने से फ्लेक्सिबिलिटी, बैलेंस और एनर्जी फ़्लो बेहतर होता है, जिससे आसन के दौरान परेशानी नहीं होती। एक बैलेंस्ड सात्विक डाइट – जिसमें फल, सब्ज़ियाँ, साबुत अनाज और नट्स हों – शरीर को हल्का और दिमाग को शांत रखने में मदद करती है, जिससे गहरे फ़ोकस और मेडिटेशन में मदद मिलती है।
तय समय पर खाना खाने से डाइजेशन में मदद मिलती है और एनर्जी लेवल स्थिर रहता है। योग के बाद, पौष्टिक खाना शरीर को बिना भारीपन के तरोताज़ा करता है। जब डाइट और टाइमिंग को योग प्रैक्टिस के साथ अलाइन किया जाता है, तो कुल मिलाकर शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक फ़ायदे काफ़ी बढ़ जाते हैं। योगाभ्यासी के लिए आहार, विहार और समय का कितना महत्व होता है आइए जानते हैं योगाचार्य कंदर्प शर्मा से।
योग का आहार-विहार से संबंध
योगाचार्य कंदर्प शर्मा के अनुसार, आहार (Yogic Food) हमारे जीवन का मूल है। हमें दिनचर्या के कुछ मूल सिद्धांतों को अपनाना होगा। जैसा कि हम जानते हैं कि योग हमारी मानसिक, आध्यात्मिक, उन्नति का पथ है। इसलिए शारीरिक संरचना, शरीर की आवश्यकता और ऊर्जा के मूल सिद्धांतों को समझना होगा।
आहार, विहार, व्यवहार का असर, ऊर्जा के रूपांतर और शारीरिक क्षमता पर पड़ता है। इसलिए हमें आयुर्वेद का सहारा लेना चाहिए। मानव शरीर एक ऐसा यंत्र है, जो कई घटकों को मिलाकर बना हुआ है। कंकाल तंत्र, कार्डियोवैस्कुलर सिस्टम, मास टिशू, पाचन तंत्र, अंतःस्त्रवी प्रणाली, तंत्रिका तंत्र, श्वसन प्रणाली, प्रतिरक्षा और लसिका प्रणाली, मूत्र प्रणाली, महिला प्रजनन प्रणाली, पुरुष प्रजनन तंत्र। ऐसे कुल 11 सिस्टम हमारे शरीर के अंदर हैं।
इनमे से 9 पुरुष और स्त्री दोनों के अंदर पाए जाते हैं। यह सभी विभाग आपसी सहयोग और समन्वय से काम काम करते हैं। भोजन शरीर के साथ मनस्थिति को भी प्रभावित करता है।
योग करने वाले को सावधानी से करना चाहिए भोजन का सेवन
योगाचार्य कंदर्प शर्मा बताते हैं कि एक योगी को भोजन (Yogic Food) का चयन बहुत ही सावधानी के साथ करना चाहिए। इसलिए कहा गया है कि जैसा अन्न वैसा मन। मूलतः मन अन्न को, प्राण तरल को और वाणी अग्नि से बनते हैं। आहार को हम शरीर और मन पर पड़ने वाले प्रभाव के रूप में वर्गीकृत कर सकते हैं। मूलतः यह सात्विक, रसिक और तामसिक हैं।
सात्विक भोजन- जैसे फल, सब्जियां, फलियां, साबुन, अनाज, दूध, आदि। पौष्टिक, हल्का और सुपाच्य भोजन स्वास्थ्यकारक होता है और यह शारीरिक इम्यूनिटी को बढ़ाता है और शरीर को हल्का और लचीला बनाता है। ऐसा आहार हमें सहज, शक्तिशाली और उत्साहित बनाता है।
रसिक भोजन- जैसे मसालेदार, नमकीन, खट्टे, अत्याधिक मीठे, चीनी युक्त, चाय, कॉफी, मिठाई, लहसुन, इत्यादि। ऐसे भोजन उत्तेजित करते हैं और इच्छाएं बढ़ाते हैं।
तामसिक भोजन- जैसे तले हुए, बासी, शराब, ठन्डे खाद्य पदार्थ, अत्यादिक वसा युक्त, इत्यादि। ऐसा भोजन जड़ता और आलस को बढ़ाता है।
क्या होता है हमारे द्वारा ग्रहण किये गए भोजन का?
छान्दोग्य उपनिषद के अनुसार, जो भोजन हम ग्रहण करते हैं, वह वास्तव में तीन भागों या रूपों में परिवर्तित हो जाता है। यह परिवर्तन शरीर के भीतर पाचन और अवशोषण की प्रक्रिया के माध्यम से होता है। पहला रूप शरीर से मल द्वारा निकल जाता है। दूसरा रूप, शरीर सोंख कर त्वचा बनाता है। तीसरा रूप, शरीर कंपन करके मन को प्रभावित करता है।
चरक संहिता और षष्ठोज संहिता, जो आहार और पोषण के दो सबसे बड़े आयुर्वेदिक संकलन हैं, के अनुसार भोजन शरीर, स्वास्थ्य, जलवायु, मौसम, आदत और व्यक्तिगत ज़रूरत के हिसाब से होना चाहिए। खाना एक तय समय पर, तय अंतराल पर और ज़रूरत के हिसाब से लेना चाहिए। भोजन करते समय वातावरण और मानसिक स्थिति समान रूप से महत्वपूर्ण हैं। अच्छा भोजन भी घबराहट, अवसाद या चिंता की स्थिति में नकारात्मक असर डाल सकता है।
कैसे करना चाहिए भोजन?
योगाचार्य कंदर्प शर्मा के अनुसार, योग के हिसाब से शांति में मौसम में चुप्पी के साथ लिया भोजन शरीर में पोषक तत्वों को बढ़ाता है। सात्विक मानसिक स्थिति को भी पोषित करता है। सही समय पर लिया हुआ भोजन शारीरिक प्रणाली को व्यवस्थित और शरीर की प्राकृतिक संरचना को सुचारु रूप से चलने में मदद करता है।
योगाचार्य कंदर्प शर्मा कहते हैं कि योग अभ्यासी को सात्विक भोजन का आग्रह रखना चाहिए। भोजन बनाते और खाते समय सुखद मनोवस्था भोजन में प्राण शक्ति को बरकरार रखने में सहायक है। अंततः योगी के लिए शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य को विकसित करने के लिए आहार, विहार, और व्यवहार और सही जानकारी अत्यंत आवश्यक है। यही नियम हमारे स्वयं और दुनिया के प्रति दृष्टिकोण को प्रभावित करते हैं।
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