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Yoga: योग क्या है, कैसे हुई इसकी उत्पत्ति? योगाचार्य से जानें योग की उपयोगिता और महत्व

भारत विश्व का योग गुरु है। भारत ने ही विश्व को योग जैसा वरदान दिया है। प्राचीन काल से ही भारत में योग की महिमा किसी से छिपी नहीं है।
05:52 PM Aug 25, 2025 IST | Preeti Mishra
भारत विश्व का योग गुरु है। भारत ने ही विश्व को योग जैसा वरदान दिया है। प्राचीन काल से ही भारत में योग की महिमा किसी से छिपी नहीं है।

Yoga: भारत विश्व का योग गुरु है। भारत ने ही विश्व को योग जैसा वरदान दिया है। वैसे तो प्राचीन काल से ही भारत में योग की महिमा किसी से छिपी नहीं है। जबसे विश्व योग दिवस मनाया जाने लगा है तब से इसका महत्व और भी ज्यादा बढ़ गया है। योग, एक प्राचीन अभ्यास जिसकी उत्पत्ति 5,000 वर्ष पूर्व भारत में हुई थी। यह एक समग्र अनुशासन है जो शरीर, मन और आत्मा को एक करता है।

वैदिक परंपराओं में निहित, यह शारीरिक मुद्राओं (आसनों), श्वास तकनीकों (प्राणायाम) और ध्यान को स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए जोड़ता है। भारत में ऋषिकेश, मैसूर और वाराणसी में प्रसिद्ध योग केंद्र हैं, जहाँ पारंपरिक शिक्षाएँ आज भी संरक्षित हैं। विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त, योग अब हर साल 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाया जाता है। फिटनेस के अलावा, भारत में योग गहन आध्यात्मिकता से ओतप्रोत है, जिसका उद्देश्य एक स्वस्थ जीवनशैली को बढ़ावा देते हुए सद्भाव, आंतरिक शांति और आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करना है।

तमाम जानकारी के अलावा आज भी देश में ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्हे यह नहीं पता है कि योग क्या है और इसकी उत्पत्ति कैसे हुई है। इसी बात को आम जन तक पंहुचाने के लिए हिन्द फर्स्ट योग पर एक पूरी सीरीज लेकर आया है। इस सीरीज में हम योगाचार्य कंदर्प शर्मा से बात कर योग के बारे में तमाम छिपी हुई जानकारी को आमजन तक पंहुचाएंगे। आइये डालते हैं सीरीज के पहले लेख पर एक नजर:

योगाचार्य बता रहे हैं योग शब्द की कैसे हुई उत्पत्ति?

योगाचार्य कंदर्प शर्मा के अनुसार, योग शब्द संस्कृत धातु "युज्" (Yuj) से निकला है, जिसका अर्थ "जोड़ना", "एकजुट करना" या "मिलन" होता है। शरीर, सांस, मन का एकरूप होना ही योग है। भोतिक शरीर को ब्रह्मांड्य ऊर्जा से जोडने के विज्ञान का नाम योग है। 'यद पिंडे तद ब्रह्मांडे,' अर्थात जो शरीर में है वही ब्रह्मांड में है। इसी सिद्धान्त को अनुभव करना ही योग है।

योगाचार्य श्री शर्मा के अनुसार योग पुर्ण रूप से एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है, जो हमारे अस्तित्व को एक लय में लाने का काम करती हैं। योग भौतिक शरीर को सुक्ष्म शरीर, अर्थात मन, बुद्धि, चित्त से जोडने का या बैलेंस करने का विज्ञान है। योग अंतर मन को समझने की प्रक्रिया है, जिसका उल्लेख 10,000 साल से भी पुराने हमारे वेदों और पुराणों में मिलता है। योग चेतना के स्तरों का अध्ययन और अनन्द में जीवन को जीने का घ्यान है।

क्या है योग की उपयोगिता और महत्व?

योगाचार्य कंदर्प शर्मा के अनुसार योग की उपयोगिता और महत्व, शारीरिक व्यायाम या कसरत के द्वारा मांशपेशियों को विकसित किया जाना है। लेकिन योग के द्वारा सभी आंतरिक अंग, जिसे लीवर, किड्नी, आधी का अच्छे से व्यायाम हो जाता है और अंतरस्त्राविक अंग, जिसे की पीटियोटरी, थयोरोइड, आदि क्लेंड से निकलने वाले हार्मोन को बैलेंसिंग में मिलती है और मानसिक रूप से हम उन्दत महसूस करते हैं।

योगाचार्य कंदर्प शर्मा बताते हैं कि हर उम्र के व्यक्ति योग कर सकते हैं और खासकर मानसिक समस्या में इसके बड़े लाभ देखे गए हैं। योग भावनात्मक रूप से भी हमें मजबूती देता है। पतंजलि ऋषि ने योगसुत्र में कहा है कि योग के द्वारा चित्त की परेशानी को दूर करना ही योग है अर्थात मन में चल रहे असंख्य विचारों को शांत कर आनन्त को प्राप्त करना ही योग है। योग आनंद से जीवन जीने में मदद करता है। श्री कृष्ण ने भी भगवत गीता में कहा है 'योग कर्मेशु कोशलम' अर्थात कर्म में कुशलता ही योग है अर्थात विभिन्न उपायों के द्वारा मन को शांत करना ही योग है।

श्री शर्मा बताते हैं कि आधुनिक युग में तनाव को कम करने में योग, योगी क्रियाएं बहुती ही सहज सिद्ध हो रही है और विभिन्न वैज्ञानिक प्रयोगों में भी यह सिद्ध हो चुका है कि सकारात्मक जीवन जीने में योग बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है।

आज के दौर में योग का है बहुत महत्व

योगाचार्य कंदर्प शर्मा के अनुसार, योग पुर्ण रूप से व्याख्यानिक पद्धति है, जो जीवन को सुचारू रूप से जीने में मदद रूप है। आज के रफ़्तार भरे भरी जीवन में, जब हर क्रिया के लिए समय कम पड़ जा रहा है, तनाव और अशांति का वातावरण बढ़ जाता है, तब हम स्वयं के साथ समझोता करते हैं, और मानसिक रूप से बिखरे हुए महसूस करते हैं। खुशी, आनंद, इच्छा प्रेम, अपनापन यह सभी भाव उच्चतर चेतना के प्रतीक हैं, जो पुर्णता को अभिव्यक्त करते हैं।

श्री शर्मा के अनुसार, मानव को जन्म से ही यह सभी भाव उपहार स्वरूप मिले हैं, लेकिन जैसे जैसे बड़े होते जाते हैं, और मन, मष्तिस्क बाहरी दुनिया के संपर्क में आता है, नाकारात्मक भाव पुर्णता की जगह लेने लगते हैं। जैसे की अगर देखें, बालक पुर्ण है, मस्त है, खुश है, आनन्द में है, और उसकी उपस्थिति ही वातावरण को हल्का और प्रेममय बनाता है। वही बालक तीन, चार साल का होते होते अभाव और प्रभाव को फील करने लगता है, और दस साल तक होने तक पुर्ण रूप से बाहरी माया के प्रभाव में आ जाता है, यही से राग और द्वेष की शुरुआत हो चुकी होती है।

उसी निर्मल हास्य, सहजता को पुनः प्राप्त करना ही योग है। दिखावा, बाहरी आडम्बर, प्रभाव और अभाव से मुक्त व्यक्ति ही योगी है। स्वयं को मिलने की चाह, परमानन्द की अनुभूति ही योग है।

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