Sehat Ki Baten: बात -बात पर हो जाते हैं इमोशनल, तो शरीर में हो सकती है इस हार्मोन की गड़बड़ी
Sehat Ki Baten: आज की तेज़-तर्रार लाइफस्टाइल में, बहुत से लोग छोटी-छोटी बातों पर इमोशनल, चिड़चिड़े या स्ट्रेस में आ जाते हैं। कभी-कभी बहुत ज़्यादा परेशान होना नॉर्मल है, लेकिन अगर यह बार-बार होने लगे, तो यह किसी गहरी बात का संकेत हो सकता है—हॉर्मोनल इम्बैलेंस। हॉर्मोन शरीर में केमिकल मैसेंजर की तरह काम करते हैं, जो मूड, एनर्जी, मेटाबॉलिज्म, नींद और पूरी इमोशनल हेल्थ को कंट्रोल करते हैं।
जब कुछ हॉर्मोन में उतार-चढ़ाव होता है—जैसे एस्ट्रोजन, प्रोजेस्टेरोन, कोर्टिसोल, या थायरॉइड हॉर्मोन—तो आपकी इमोशनल स्टेबिलिटी पर असर पड़ सकता है, जिससे मूड स्विंग, एंग्जायटी, गुस्सा या अचानक उदासी हो सकती है। कारणों को समझने और हेल्दी लाइफस्टाइल की आदतें अपनाने से बैलेंस ठीक करने और इमोशनल हेल्थ को बेहतर बनाने में मदद मिल सकती है।
हॉर्मोनल इम्बैलेंस आपको इमोशनल क्यों बनाता है?
हॉर्मोन यह कंट्रोल करते हैं कि दिमाग इमोशन को कैसे प्रोसेस करता है। जब ये हॉर्मोन बैलेंस से बाहर हो जाते हैं, तो इमोशनल रिस्पॉन्स बहुत ज़्यादा हो जाता है। उदाहरण के लिए, सेरोटोनिन का कम लेवल चिड़चिड़ापन बढ़ा सकता है, जबकि कोर्टिसोल (स्ट्रेस हॉर्मोन) का ज़्यादा लेवल छोटी-छोटी बातों पर एंग्जायटी, डर और इमोशनल ब्रेकडाउन को ट्रिगर कर सकता है। महिलाओं में खासकर पीरियड्स, प्रेग्नेंसी, मेनोपॉज़ या थायरॉइड में उतार-चढ़ाव के दौरान इमोशनल बदलाव होते हैं, जबकि पुरुषों में कम टेस्टोस्टेरोन या ज़्यादा स्ट्रेस के कारण इमोशनल बदलाव दिख सकते हैं। इन संकेतों को जल्दी पहचानने से लंबे समय तक चलने वाली हेल्थ प्रॉब्लम से बचने में मदद मिलती है।
हार्मोनल इम्बैलेंस के मुख्य कारण
स्ट्रेस और लाइफस्टाइल का प्रेशर: क्रोनिक स्ट्रेस से कोर्टिसोल लेवल बढ़ता है, जिससे मूड पर असर पड़ता है और नींद में दिक्कत आती है, जिससे इमोशनल हाइपरसेंसिटिविटी होती है।
खराब डाइट और न्यूट्रिएंट्स की कमी: विटामिन D, मैग्नीशियम और ओमेगा-3 जैसे ज़रूरी न्यूट्रिएंट्स की कमी से ब्रेन केमिस्ट्री और हार्मोन प्रोडक्शन पर असर पड़ सकता है।
इर्रेगुलर स्लीप साइकिल: खराब नींद से मेलाटोनिन लेवल कम होता है और मूड से जुड़े हार्मोन का बैलेंस बिगड़ता है।
मेंस्ट्रुअल साइकिल और मेनोपॉज़: महिलाओं में नैचुरली हार्मोनल बदलाव होते हैं, जिससे इमोशनल रिएक्शन तेज़ हो सकते हैं।
थायरॉइड डिसऑर्डर: हाइपोथायरॉइडिज़्म और हाइपरथायरॉइडिज़्म दोनों से मूड स्विंग, थकान और चिड़चिड़ापन होता है।
कैफीन और चीनी का ज़्यादा इस्तेमाल: ये एड्रेनालाईन और इंसुलिन लेवल बढ़ाते हैं, जिससे इमोशनल अस्थिरता होती है।
हार्मोनल इम्बैलेंस के लक्षण
छोटी-छोटी बातों पर इमोशनल हो जाना
अचानक मूड बदलना
चिंता या घबराहट
चिड़चिड़ापन बढ़ना
बिना किसी वजह के उदासी
नींद में खलल
थकान और कम एनर्जी
ध्यान लगाने में मुश्किल
एक्ने जैसी स्किन की समस्याएं
इर्रेगुलर पीरियड्स (महिलाओं में)
अगर आपको ये लक्षण लगातार दिखें, तो डॉक्टर से सलाह लेना ज़रूरी है।
हॉर्मोन बैलेंस करने के नैचुरल तरीके
हॉर्मोन-फ्रेंडली डाइट अपनाएं और स्ट्रेस कम करें
प्रोटीन, हेल्दी फैट, फाइबर और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर खाना शामिल करें। नट्स, बीज, हरी पत्तेदार सब्जियां, फल, साबुत अनाज और ऑलिव या नारियल तेल जैसे हेल्दी तेल शामिल करें। हॉर्मोनल स्टेबिलिटी बनाए रखने के लिए प्रोसेस्ड फूड, ज़्यादा चीनी और तली हुई चीज़ों से बचें। मेडिटेशन, योग, गहरी सांस लेने और चलने जैसी प्रैक्टिस स्ट्रेस हॉर्मोन को कम करने और इमोशनल बैलेंस को बेहतर बनाने में मदद करती हैं। रोज़ाना 10-15 मिनट माइंडफुलनेस पर बिताने से एंग्जायटी काफी कम हो सकती है।
रेगुलर नींद और एक्सरसाइज का शेड्यूल बनाए
मूड, भूख और स्ट्रेस से जुड़े हॉर्मोन को रेगुलेट करने के लिए नींद ज़रूरी है। 7-8 घंटे की अच्छी नींद का लक्ष्य रखें। सोने से कम से कम एक घंटा पहले स्क्रीन से बचें और रात में आराम करने का रूटीन फॉलो करें। फिजिकल एक्टिविटी से एंडोर्फिन रिलीज़ होते हैं, जिन्हें “फील-गुड हॉर्मोन” भी कहा जाता है। रोज़ाना 30 मिनट पैदल चलने से भी स्ट्रेस कम हो सकता है, मूड अच्छा हो सकता है और हार्मोनल बैलेंस ठीक हो सकता है।
हर्बल नुस्खे शामिल करें और हाइड्रेटेड रहें
अश्वगंधा, शतावरी, तुलसी और सौंफ जैसी कुछ जड़ी-बूटियाँ नैचुरली हार्मोन हेल्थ को सपोर्ट करती हैं। ये एंग्जायटी कम करने और इमोशनल वेलनेस को बढ़ाने में भी मदद करती हैं। डिहाइड्रेशन दिमाग और हार्मोन पर असर डालता है, जिससे चिड़चिड़ापन और थकान होती है। रोज़ाना कम से कम 7-8 गिलास पानी पिएं।
कैफीन और चीनी कम लें
ज़्यादा चीनी और कैफीन एड्रेनालाईन लेवल बढ़ाते हैं, जिससे इमोशनल उतार-चढ़ाव होता है। इनकी जगह हर्बल चाय या नैचुरल स्वीटनर कम मात्रा में लें।
डॉक्टर को कब दिखाएं
अगर इमोशनल लक्षण दो हफ़्ते से ज़्यादा समय तक रहें, तो हेल्थकेयर प्रोफेशनल से सलाह लेना सही रहेगा। थायरॉइड, एस्ट्रोजन, प्रोजेस्टेरोन, टेस्टोस्टेरोन या कोर्टिसोल लेवल के लिए ब्लड टेस्ट से समस्या का पता लगाने में मदद मिल सकती है। जल्दी पता चलने से कॉम्प्लीकेशंस से बचा जा सकता है और समय पर इलाज पक्का होता है।
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