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योग मार्ग में आ रही रुकावटों को कैसे करें दूर, जानिए योगाचार्य कंदर्प शर्मा से

ऋषि पतंजलि के अनुसार, मुख्य रूप से नौ तरह की रुकावटों का सामना करना पड़ता है।
02:37 PM Nov 26, 2025 IST | Preeti Mishra
ऋषि पतंजलि के अनुसार, मुख्य रूप से नौ तरह की रुकावटों का सामना करना पड़ता है।

Obstacle in Yoga Yatra: हर इंसान खुशी चाहता है, प्यार चाहता है, शांति पसंद करता है और उसे पाने की कोशिश करता है। जब कोई योगी साधना या जीवन की पूर्णता के रास्ते पर आगे बढ़ने की कोशिश करता है, तो ऋषि पतंजलि के अनुसार, मुख्य रूप से नौ तरह की रुकावटों (Obstacle in Yoga Yatra) का सामना करना पड़ता है। आइये इन रुकावटों पर डालते हैं एक नजर।

कौन-कौन से आती हैं रुकावटें

योगाचार्य कंदर्प शर्मा के अनुसार योग मार्ग में आने वाली रुकावटें हैं- व्याधि (शारीरिक रोग), स्त्यान (मानसिक सुस्ती/अकर्मण्यता), संशय (संदेह), प्रमाद (लापरवाही), आलस्य (शरीर की सुस्ती), अविरति (विषयों में आसक्ति), भ्रांति दर्शन (गलत ज्ञान), अलब्ध-भूमिकात्व (योग के किसी स्तर की प्राप्ति न होना), और अनवस्थितत्व (एक बार प्राप्त अवस्था में टिक न पाना)। आइये इन बिंदुओं (Obstacle in Yoga Yatra) को विस्तार से समझने का प्रयास करते हैं।

व्याधि (शारीरिक रोग)

योगाचार्य कंदर्प शर्मा बताते हैं कि व्याधि का अर्थ है बीमार होना। शरीर के गुणों के अनुसार व्यवहार न करने पर बीमार होना। शरीर व अंगों में किसी भी प्रकार का रोग होना। कंदर्प शर्मा के अनुसार, इसका एक ही उपाय है दैनिक दिनचर्या बनाए रखना। सेहत पाने के लिए आयुर्वेद और आयुर्वेदिक दवाओं का इस्तेमाल करना।

स्त्यान (मानसिक सुस्ती/अकर्मण्यता)

योगाचार्य कंदर्प शर्मा के अनुसार इसका अर्थ है अकर्मण्यता। किसी भी काम में उदास या शिथिल होना। मानसिक रूप से अस्वस्थ। शरीर ठीक है और मौज-मस्ती करने में कोई दिक्कत नहीं है लेकिन योग करते समय मन में चिंता बढ़ जाती है और उत्साह चला जाता है। योगाचार्य कंदर्प शर्मा के अनुसार, यह भी एक रुकावट है।

संशय (संदेह)

योगाचार्य कंदर्प शर्मा बताते हैं कि संशय या शक डिप्रेशन का मुख्य कारण है। मुख्य रूप से ये तीन तरह के हो सकते हैं-

- खुद पर या अपनी काबिलियत पर।
- क्या मैं यह कर पाऊंगा?
- टीचर, गाइड या टीचर पर संशय।

प्रमाद (लापरवाही)

योगाचार्य कंदर्प शर्मा के अनुसार प्रमाद का अर्थ है लापरवाही या जानबूझकर गलत करना। हमें पता है कि क्या सही है और क्या गलत। फिर भी, सही रास्ता नहीं चुनते। जैसे डायबिटीज के मरीज को पता है कि उसे कितना मीठा खाना चाहिए, फिर भी, लिमिट से ज़्यादा खाना लापरवाही का उदाहरण है।

आलस्य (शरीर की सुस्ती)

योगाचार्य कंदर्प शर्मा बताते हैं कि आलस्य कई कारणों से हो सकता है। शरीर में भारीपन आ जाना और आसन एक्सरसाइज़ करने में परेशानी आना। यह आलस्य की वजह से होता है।

अविरति (विषयों में आसक्ति)

योगाचार्य कंदर्प शर्मा बताते हैं की छठा रुकावट है अविरति। इसका अर्थ है मन में तृष्णा का बना रहना। इसका अर्थ है इन्द्रिय सुख की कामना करना और संसार के विषयों की ओर आकर्षित होना।

भ्रांति दर्शन (गलत ज्ञान)

योगाचार्य कंदर्प शर्मा बताते हैं भ्रान्ति दर्शन का अर्थ है मिथ्या ज्ञान। हर बार कल्पना में उलझ जाना और सपनों को वास्तविक समझना ही एक प्रकार का मिथ्या ज्ञान है।

अलब्ध-भूमिकात्व (योग के किसी स्तर की प्राप्ति न होना)

योगाचार्य कंदर्प शर्मा बताते हैं कि इसका अर्थ है समाधि की अप्राप्ति। ऐसा महसूस करना की किसी भी प्रकार की प्रगति नहीं हो रही है। लक्ष्य प्राप्त नहीं हो रहा है और धीरे-धीरे उत्साह में कमी आ रही है। यह भी एक प्रकार की बाधा है।

अनवस्थितत्व (एक बार प्राप्त अवस्था में टिक न पाना)

योगाचार्य कंदर्प शर्मा अनुसार, अनावस्थित तत्व अर्थात अच्छे अनुभव होना लेकिन लंबे समय तक अनुभव का नहीं बने रहना।

योगाचार्य कंदर्प शर्मा बताते हैं कि ये नौ प्रकार की बाधाएं साधक के विकास में अवरोध बनती हैं। इसका एक ही उपाय है ईश्वर परिधान या ईश्वर शरण गति। जप, ध्यान और एक तत्व के अभ्यास से हम इन रुकावटों को दूर कर सकते हैं और पूर्णता को प्राप्त कर सकते हैं।

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