Health Ki Baat: बारिश के मौसम में नहीं खाना चाहिए नॉन वेज, जानिए क्यों ?
Health Ki Baat: बरसात का मौसम चिलचिलाती गर्मी से राहत तो देता है, लेकिन बैक्टीरिया, वायरस और संक्रमणों का प्रजनन स्थल भी बन जाता है। इस दौरान, लोगों को अक्सर मांसाहारी भोजन से परहेज करने की सलाह दी जाती है जैसे चिकन, मछली और अंडे। हालाँकि ये फूड्स प्रोटीन और पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं, लेकिन मानसून के कारण ये दूषित होने की संभावना को बढ़ा देते हैं और पचाने में मुश्किल होते हैं। आइए विस्तार से जानें कि विशेषज्ञ और आयुर्वेद, दोनों ही बरसात के मौसम में मांसाहारी भोजन के सेवन में सावधानी बरतने की सलाह क्यों देते हैं?
फ़ूड पोइसिंग का खतरा
उच्च नमी के कारण मानसून बैक्टीरिया और फंगस के पनपने का सबसे अच्छा मौसम होता है। मछली, चिकन और मांस जैसे मांसाहारी खाद्य पदार्थ अगर ठीक से स्टोर न किए जाएँ तो जल्दी खराब हो जाते हैं। दूषित भोजन खाने से फ़ूड पॉइज़निंग, दस्त और पेट में संक्रमण हो सकता है, जो बरसात के मौसम में ज़्यादा आम हैं।
मानसून में धीमा पाचन
आयुर्वेद के अनुसार, मानसून के दौरान पाचन क्रिया कमज़ोर हो जाती है क्योंकि अग्नि (पाचन अग्नि) मंद हो जाती है। भारी और तैलीय भोजन, खासकर मांस और तले हुए फूड्स , पचने में अधिक समय लेते हैं। इससे अपच, पेट फूलना और एसिडिटी जैसी समस्याएं हो सकती हैं। हल्का शाकाहारी भोजन करने से पेट पर ज़्यादा बोझ नहीं पड़ता।
मछली और समुद्री भोजन में जलजनित रोगों का खतरा
मछली और समुद्री भोजन की माँग बहुत ज़्यादा है, लेकिन मानसून मछली पकड़ने के लिए सबसे अच्छा मौसम नहीं माना जाता है। बाढ़ और सीवेज के पानी के मिलने से जलाशय दूषित हो जाते हैं, जिससे मछलियाँ खाने के लिए असुरक्षित हो जाती हैं। इस दौरान समुद्री भोजन खाने से हैजा, टाइफाइड और गैस्ट्रोएंटेराइटिस हो सकता है। यही कारण है कि डॉक्टर बरसात के मौसम में समुद्री भोजन से परहेज करने की सलाह देते हैं।
संक्रमण की ज़्यादा संभावना
मांसाहारी भोजन, अगर ठीक से न पकाया जाए, तो हानिकारक रोगाणुओं को पनपने का मौका दे सकता है। मानसून के दौरान, उच्च आर्द्रता के कारण, रेफ्रिजरेशन भी बैक्टीरिया के विकास को पूरी तरह से रोक नहीं पाता। अधपका या बासी मांस साल्मोनेला और ई.कोली जैसे संक्रमणों का कारण बन सकता है, जो सीधे आंतों को प्रभावित करते हैं और इम्युनिटी को कम करते हैं।
बरसात के मौसम में बेहतर विकल्प
भारी मांसाहारी भोजन के बजाय, आपको ये चीज़ें खानी चाहिए:
हल्के शाकाहारी व्यंजन जैसे खिचड़ी, दाल और सूप।
एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर हरी पत्तेदार सब्ज़ियाँ (पालक, मेथी, बथुआ)।
इम्युनिटी बढ़ाने के लिए सेब, नाशपाती, पपीता और अनार जैसे फल।
संक्रमण से लड़ने के लिए अदरक की चाय, तुलसी का पानी या हल्दी वाला दूध जैसे हर्बल पेय।
ये फूड्स न केवल पाचन क्रिया को मज़बूत करते हैं, बल्कि शरीर को मौसमी बीमारियों से लड़ने में भी मदद करते हैं।
आयुर्वेदिक दृष्टिकोण
आयुर्वेद के अनुसार, वर्षा ऋतु (बरसात का मौसम) के दौरान शरीर में पित्त असंतुलन का ख़तरा सबसे ज़्यादा होता है, जिससे त्वचा की एलर्जी, एसिडिटी और संक्रमण हो सकते हैं। मांसाहारी भोजन खाने से यह ख़तरा और बढ़ जाता है क्योंकि यह शरीर में गर्मी और टॉक्सिक आइटम्स पैदा करता है। इसलिए, आसानी से पचने वाले शाकाहारी भोजन और इम्युनिटी बढ़ाने वाली जड़ी-बूटियों वाले सात्विक आहार का पालन करने की सलाह दी जाती है।
अगर आप मानसून में भी नॉन-वेज खाते हैं तो सावधानियां
हमेशा साफ़-सुथरे स्रोतों से ताज़ा मांस और मछली खरीदें।
बैक्टीरिया मारने के लिए उन्हें तेज़ तापमान पर अच्छी तरह पकाएँ।
स्ट्रीट फ़ूड, खासकर मांसाहारी व्यंजन, खाने से बचें।
सीमित मात्रा में खाएँ और हल्के खाने के साथ खाएँ।
बरसात के मौसम में कभी भी बासी या दोबारा गर्म किया हुआ नॉन-वेज न खाएँ।
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