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CONGRESS LOGO HISTORY: काँग्रेस ने कई बार बदला चिन्ह, दो बैलों से हाथ तक का पूरा सफर...

CONGRESS LOGO HISTORY: दिल्ली। देश में सबसे लंबे समय तक राज करने वाली कांग्रेस अपना चुनाव चिन्ह दो बार बदल चुकी है। एक समय कांग्रेस का चुनाव चिन्ह बैलों की जोड़ी और गाय-बछड़ा हुआ करता था। हालांकि इससे पहले दो...
01:50 AM Mar 29, 2024 IST | Bodhayan Sharma
CONGRESS LOGO HISTORY: दिल्ली। देश में सबसे लंबे समय तक राज करने वाली कांग्रेस अपना चुनाव चिन्ह दो बार बदल चुकी है। एक समय कांग्रेस का चुनाव चिन्ह बैलों की जोड़ी और गाय-बछड़ा हुआ करता था। हालांकि इससे पहले दो...

CONGRESS LOGO HISTORY: दिल्ली। देश में सबसे लंबे समय तक राज करने वाली कांग्रेस अपना चुनाव चिन्ह दो बार बदल चुकी है। एक समय कांग्रेस का चुनाव चिन्ह बैलों की जोड़ी और गाय-बछड़ा हुआ करता था। हालांकि इससे पहले दो बैलों की जोड़ी भी काँग्रेस का चिन्ह रहा है। इसके बाद आया हाथ। हाथ के बाद स्थायी हो गया काँग्रेस का चिन्ह। आइए जानते हैं कांग्रेस के चुनाव चिन्ह से जुड़े इतिहास के बारे में।

'दो बैलों की जोड़ी' कांग्रेस का चुनाव चिन्ह

कांग्रेस का पूरा नाम भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) है। इसकी स्थापना देश की आजादी से पहले 1885 में हुई थी। आजादी के बाद जब देश में 1951-52 में पहला आम चुनाव हुआ तो कांग्रेस का चुनाव चिन्ह 'दो बैलों की जोड़ी' था। कांग्रेस इस चुनाव चिन्ह पर जनता से वोट चाहती थी। यह चुनाव चिन्ह किसानों और आम जनता के बीच तालमेल बनाने में सफल रहा और कांग्रेस लगभग 20 वर्षों तक दो जोड़ी बैलों के चिन्ह पर चुनाव लड़ती रही। 1970 में जब कांग्रेस का विभाजन हुआ तो पार्टी दो गुटों में बंट गई। इस वजह से चुनाव आयोग ने दो बैलों की जोड़ी का चुनाव चिह्न जब्त कर लिया।

कांग्रेस 'गाय और बछड़े' के चिन्ह पर लड़ी थी चुनाव

कामराज के नेतृत्व वाली पुरानी कांग्रेस को 'तिरंगा चरखा' का चुनाव चिन्ह दिया गया, जबकि इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली नई कांग्रेस को 'गाय और बछड़ा' का चुनाव चिन्ह दिया गया। बाद में इस प्रतीक पर विवाद खड़ा हो गया। 1977 में आपातकाल ख़त्म होने के बाद कांग्रेस की लोकप्रियता घटने लगी और कांग्रेस के बुरे दिन शुरू हो गए। इस बीच चुनाव आयोग ने एक बार फिर गाय और बछड़े के चुनाव चिन्ह को जब्त कर लिया है।

कांग्रेस को कैसे मिला पंजा चुनाव चिन्ह?

जब कांग्रेस कठिन दौर से गुजर रही थी, तब इंदिरा गांधी तत्कालीन शंकराचार्य स्वामी चन्द्रशेखरेन्द्र सरस्वतीजी का आशीर्वाद लेने आईं। कहा जाता है कि इंदिरा गांधी की बात सुनकर स्वामी चन्द्रशेखरेन्द्र सरस्वतीजी चुप हो गये और कुछ देर बाद अपना दाहिना हाथ उठाकर उन्हें आशीर्वाद दिया। 1977 में कांग्रेस का एक और विघटन हुआ और इंदिरा ने कांग्रेस (आई) की स्थापना की।

हाथी, साइकिल और हाथ के पंजे के प्रतीक विकल्प

जब बूटा सिंह को चुनाव चिन्ह के लिए चुनाव आयोग के पास भेजा गया तो कांग्रेस को हाथी, साइकिल और हाथ का पंजा चुनाव चिन्ह में से किसी एक को चुनने का विकल्प दिया गया। शंकराचार्य के आशीर्वाद को सोचकर इंदिरा गांधी ने पंजे का चुनाव चिन्ह फाइनल किया। इस चुनाव चिन्ह पर इंदिरा गांधी को बड़ी जीत मिली। तब से कांग्रेस इसी सिंबल पर चुनाव लड़ती आ रही है।

हाथी-साइकिल चुनाव चिन्ह भी लोगों को आया पसंद

बसपा और सपा को वही हाथी और साइकिल सिंबल मिले जिन्हें कांग्रेस ने लेने से इनकार कर दिया था। दोनों पार्टियां कई बार यूपी में सरकार बना चुकी हैं। आज भी समाजवादी पार्टी का चुनाव चिन्ह साइकिल और बसपा का चुनाव चिन्ह हाथी है।

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