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Vrishchik Sankranti 2025: 15 या 16 नवंबर, कब है वृश्चिक संक्रांति? जानें सनातन धर्म में इसका महत्व

वृश्चिक संक्रांति सूर्य के वृश्चिक राशि में प्रवेश का प्रतीक है, जो आमतौर पर नवंबर के मध्य में पड़ता है।
09:00 AM Nov 07, 2025 IST | Preeti Mishra
वृश्चिक संक्रांति सूर्य के वृश्चिक राशि में प्रवेश का प्रतीक है, जो आमतौर पर नवंबर के मध्य में पड़ता है।
Vrishchik Sankranti 2025

Vrishchik Sankranti 2025: सनातन धर्म में संक्रांति का बहुत महत्व होता है। संक्रांति सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में संक्रमण को दर्शाती है। यह वर्ष में 12 बार होता है। प्रत्येक संक्रांति को आध्यात्मिक रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि यह ब्रह्मांडीय ऊर्जा में परिवर्तन का प्रतीक है। इनमें सबसे महत्वपूर्ण मकर संक्रांति है, जो सूर्य के मकर राशि में प्रवेश का उत्सव है।

ऐसे ही जब सूर्य तुला राशि से निकलकर वृश्चिक राशि में प्रवेश करते हैं, तब वृश्चिक संक्रांति (Vrishchik Sankranti 2025) कहलाती है। वृश्चिक संक्रांति सूर्य के वृश्चिक राशि में प्रवेश का प्रतीक है, जो आमतौर पर नवंबर के मध्य में पड़ता है। हिंदू परंपरा में, इस दिन का बहुत धार्मिक महत्व है क्योंकि इसे दान, पवित्र स्नान और प्रार्थना के लिए शुभ माना जाता है। लोग मंदिरों में जाते हैं, सूर्य को जल चढ़ाते हैं और समृद्धि और सुरक्षा के लिए भगवान शिव और भगवान विष्णु की पूजा करते हैं।

कब है वृश्चिक संक्रांति?

द्रिक पंचांग के अनुसार, वृश्चिक संक्रांति (Vrishchik Sankranti 2025) रविवार, 16 नवम्बर को है। इस दिन सूर्य देव तुला राशि से निकलकर मंगल की राशि वृश्चिक में प्रवेश करेंगे।

वृश्चिक संक्रान्ति पुण्य काल - सुबह 07:59 से दोपहर 01:45 तक।
वृश्चिक संक्रान्ति महा पुण्य काल - सुबह 11:57 से दोपहर 01:45 तक।
वृश्चिक संक्रान्ति का क्षण - दोपहर 01:45

कैसी रहेगी ये संक्रांति?

द्रिक पंचांग के अनुसार, व्यापारियों के लिए यह संक्रान्ति अच्छी है। वहीं वस्तुओं की लागत महँगी होगी। वृश्चिक संक्रांति अति कष्टपूर्ण समय लाती है। इस समय के दौरान लोग खांसी और ठण्ड से पीड़ित होंगे, राष्ट्रों के बीच संघर्ष होगा और बारिश के अभाव में अकाल की सम्भावना बनेगी।

वृश्चिक संक्रांति का सनातन धर्म में महत्व

वृश्चिक संक्रांति का सनातन धर्म में विशेष महत्व है क्योंकि यह सूर्य के वृश्चिक राशि में प्रवेश का प्रतीक है। ऐसा माना जाता है कि यह काल गहन आध्यात्मिक परिवर्तन और मन व आत्मा की शुद्धि लाता है। इस दिन, लोग नकारात्मक कर्मों के प्रभाव को कम करने और ईश्वरीय आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए पवित्र स्नान, दान, तर्पण और पूजा-अर्चना करते हैं।

वृश्चिक संक्रांति शिव और विष्णु पूजा, ध्यान और सेवा कार्यों के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। वृश्चिक संक्रांति पूर्वजों के सम्मान और दिवंगत आत्माओं की शांति के लिए भी महत्वपूर्ण है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन भक्ति करने से समृद्धि, सकारात्मकता और आंतरिक शक्ति प्राप्त होती है।

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