Vat Savitri Vrat: आज है वट सावित्री व्रत, जानें पूजा का शुभ मुहूर्त, विधि और व्रत कथा
Vat Savitri Vrat: आज पूरे भारत खासकर उत्तर भारतीय राज्यों में, विवाहित हिंदू महिलाओं द्वारा वट सावित्री व्रत बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाएगा। इस शुभ दिन पर, महिलाएं बरगद के पेड़ (Vat Savitri Vrat) की पूजा करती हैं और अपने पतियों की लंबी उम्र और खुशहाली के लिए प्रार्थना करती हैं।
यह प्रथा सावित्री की पौराणिक भक्ति से प्रेरित है, जिसने अपने अटूट विश्वास और दृढ़ संकल्प के माध्यम से अपने पति सत्यवान को मृत्यु के चंगुल से वापस ला दिया था। आज के दिन (Vat Savitri Vrat) महिलाएं व्रत रखेंगी, बरगद के पेड़ के चारों ओर पवित्र धागे बांधेंगी और शक्ति, समर्पण और वैवाहिक निष्ठा का प्रतीक वट सावित्री व्रत कथा सुनते हुए अनुष्ठान करेंगी।
वट सावित्री व्रत पूजा मुहूर्त
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, वट सावित्री का व्रत ज्येष्ठ महीने की अमावस्या तिथि को रखा जाता है। अमावस्या तिथि की शुरुआत 26 मई को सुबह 12:11 मिनट से होगी और अमावस्या तिथि का समापन 27 मई को सुबह 08:31 मिनट पर होगा। ऐसे में वट सावित्री व्रत 26 मई यानी आज रखा जाएगा। वट सावित्री व्रत में पूजा मध्यान्ह के बाद ही होती है क्योंकि यह वही समय है जब सावित्री ने सत्यवान को मौत के मुंह से छीना था। इसलिए आज पूजा का मुहूर्त सुबह 11:51 मिनट से 3 बजे तक रहेगा। अजा इसी मुहूर्त में वट वृक्ष की पूजा करनी चाहिए।
वट सावित्री व्रत कथा
प्राचीन समय में मद्र देश के राजा अश्वपति की कोई संतान नहीं थी। उन्होंने संतान की प्राप्ति के लिए अनेक वर्षों तक सूर्य नारायण की उपासना की। अंततः उन्हें एक कन्या की प्राप्ति हुई जिसका नाम उन्होंने "सावित्री" रखा। वह बाल्यकाल से ही अत्यंत तेजस्वी, बुद्धिमान और सुंदर थी।
जब सावित्री विवाह योग्य हुई, तो उसने स्वयं पति की खोज करने का निर्णय लिया। उसने सत्यवान, जो कि एक वनवासी और निष्कासित राजा द्युमत्सेन का पुत्र था, को अपना पति चुना। किंतु जब वह अपने पिता के पास सत्यवान से विवाह की इच्छा लेकर पहुंची, तो महर्षि नारद ने बताया कि सत्यवान एक सच्चरित्र और योग्य युवक तो है, लेकिन वह केवल एक वर्ष का आयुष्य शेष है।
यह सुनकर भी सावित्री ने सत्यवान को ही अपना पति बनाने का निश्चय किया। विवाह के बाद वह पति के साथ वन में रहने लगी। एक दिन सत्यवान जंगल में लकड़ी काटने गया, तो सावित्री भी साथ गई। वहां सत्यवान के सिर में तेज़ दर्द हुआ और वह अचेत हो गया।
उसी समय यमराज उसके प्राण लेने आए। सावित्री ने उनका पीछा करना शुरू किया। यमराज ने पहले उसे समझाया लेकिन उसकी निष्ठा, भक्ति और बुद्धिमता से प्रभावित होकर यमराज ने वरदान देने की बात कही। सावित्री ने पहले अपने ससुर का राज्य वापस मांगा, फिर सौ पुत्रों की मां बनने का वर लिया। यमराज ने सब वरदान दे दिए, लेकिन जब वह जाने लगे, तो सावित्री ने कहा, “जब मेरा पति जीवित ही नहीं रहेगा, तो मैं सौ पुत्रों की मां कैसे बनूंगी?”
यह सुनकर यमराज को अपनी भूल का एहसास हुआ और उन्होंने सत्यवान को पुनः जीवनदान दे दिया।
वट सावित्री व्रत पूजा विधि
- सुबह जल्दी उठें, पवित्र स्नान करें, स्वच्छ पारंपरिक कपड़े पहनें और अपने पति की भलाई के लिए व्रत रखने का संकल्प लें।
- सिंदूर, हल्दी, कलावा, लाल कपड़ा, चूड़ियाँ, मिठाई, फल, कलश में जल और वट सावित्री व्रत कथा की पुस्तक जैसी आवश्यक वस्तुओं की व्यवस्था करें।
- बरगद के पेड़ पर जाएँ, उसके नीचे जल छिड़कें, सिंदूर, हल्दी, फूल चढ़ाएँ और प्रार्थना करते हुए उसके चारों ओर 7 बार पवित्र धागा बाँधें।
- पेड़ के नीचे या साफ कपड़े पर सावित्री और सत्यवान की मूर्तियाँ या चित्र रखें और फूल, फल और मिठाई चढ़ाएँ।
- वट सावित्री व्रत कथा पढ़ें या सुनें।
- पेड़ और देवताओं की आरती करें, अपने पति के स्वास्थ्य, लंबी उम्र और वैवाहिक सुख के लिए आशीर्वाद मांगें।
- सभी अनुष्ठानों को पूरा करने और प्रार्थना करने के बाद, शाम को सादा भोजन करके व्रत तोड़ें।
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