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कब है ज्येष्ठ माह का पहला प्रदोष व्रत? जानें सही तिथि और शुभ मुहूर्त

माना जाता है कि इस दिन दोनों देवताओं की पूजा करने से बाधाएं कम होती हैं, शांति मिलती है और करियर और वित्तीय स्थिरता को बढ़ावा मिलता है।
11:36 AM May 19, 2025 IST | Preeti Mishra
माना जाता है कि इस दिन दोनों देवताओं की पूजा करने से बाधाएं कम होती हैं, शांति मिलती है और करियर और वित्तीय स्थिरता को बढ़ावा मिलता है।

Shani Pradosh Vrat 2025: प्रदोष व्रत भगवान शिव और देवी पार्वती को समर्पित एक पवित्र हिंदू व्रत है, जो हर महीने के शुक्ल और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को मनाया जाता है। यह व्रत (Shani Pradosh Vrat 2025) गोधूलि काल के दौरान रखा जाता है, जिसे शिव की पूजा के लिए अत्यधिक शुभ माना जाता है। जब प्रदोष सोमवार को पड़ता है तो इसे सोम प्रदोष और शनिवार को पड़ता है तो शनि प्रदोष कहते हैं।

कब है जेष्ठ माह का पहला प्रदोष व्रत?

जेठ महीने के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि की शुरुआत 24 मई को शाम 07:20 मिनट पर होगी और इसका समापन 25 मई को दोपहर 03:51 मिनट पर होगा। ऐसे में ज्येष्ठ माह का पहला प्रदोष व्रत 24 मई को रखा जाएगा। इस बार प्रदोष व्रत शनिवार को पड़ने की वजह से यह शनि प्रदोष व्रत कहलाएगा।

शनि प्रदोष व्रत (Shani Pradosh Vrat 2025) के दिन शिव जी की पूजा का शुभ मुहूर्त 07:20 मिनट से रात 09:19 मिनट तक रहेगा। शनि प्रदोष के दिन लोगों को भोलेनाथ की पूजा के लिए 2 घंटे 1 मिनट का शुभ समय मिलेगा।

शनि प्रदोष व्रत का महत्व

शनिवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। यह भगवान शिव और शनि देवता की शक्तियों का संयोजन है, जो इसे शनि दोष और कर्म संबंधी परेशानियों से सुरक्षा पाने के लिए एक आदर्श दिन बनाता है। इस दिन लोग कठोर उपवास रखते हैं, शिव अभिषेक करते हैं और प्रदोष काल के दौरान मंत्रों का जाप करते हैं।

माना जाता है कि इस दिन दोनों देवताओं की पूजा करने से बाधाएं कम होती हैं, शांति मिलती है और करियर और वित्तीय स्थिरता को बढ़ावा मिलता है। शनि प्रदोष व्रत को भक्ति के साथ करने से आध्यात्मिक विकास, पिछले पापों से मुक्ति और अधिक संतुलित और समृद्ध जीवन का आशीर्वाद मिलता है।

शनि प्रदोष व्रत पूजा विधि

- इस दिन सुबह जल्दी उठें, स्नान करें और साफ कपड़े पहनें। सूर्योदय से लेकर प्रदोष काल तक व्रत रखें।
- पूजा स्थल को साफ करें और भगवान शिव और भगवान शनि की मूर्ति या फोटो रखें। वेदी को फूलों, दीये, अगरबत्ती से सजाएँ और बिल्व पत्र जैसी पवित्र वस्तुएं चढ़ाएं ।
- पूरे दिन उपवास रखें। कुछ भक्त निर्जला भी नहीं पीते हैं, जबकि अन्य शाम की पूजा के बाद ही फल या दूध का सेवन करते हैं।
- सूर्यास्त से लगभग 1.5 घंटे पहले और बाद में प्रदोष काल के दौरान मुख्य पूजा शुरू करें। घी का दीपक जलाएं और भगवान शिव को जल, दूध, दही, शहद और घी चढ़ाएं ।
- “ओम नमः शिवाय”, महामृत्युंजय मंत्र और शनि बीज मंत्र “ओम प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः” जैसे शक्तिशाली मंत्रों का जाप करें। पूरी श्रद्धा के साथ शिव और शनि की आरती करें।
- भगवान शिव और शनिदेव को बिल्व पत्र, काले तिल, सरसों का तेल, काले कपड़े और फूल चढ़ाएँ। शनि दोष, कर्म-संबंधी समस्याओं और जीवन की बाधाओं को दूर करने के लिए ईमानदारी से प्रार्थना करें।
- शाम की रस्मों के बाद सादा सात्विक भोजन या पानी पीकर व्रत का समापन करें।
- जरूरतमंदों, खासकर गरीबों और शनि से जुड़े व्यक्तियों जैसे सफाई कर्मचारियों या मजदूरों को भोजन, तेल और कपड़े दान करें।

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