शनिवार को है प्रदोष व्रत, कालसर्प दोष निवारण के लिए उत्तम है यह दिन
Shani Pradosh Vrat 2025: प्रदोष व्रत प्रत्येक महीने के कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी के दिन किया जाता है। जिस दिन त्रयोदशी तिथि प्रदोष काल के समय व्याप्त होती है उसी दिन प्रदोष का व्रत (Shani Pradosh Vrat 2025) किया जाता है। जब प्रदोष का दिन शनिवार को पड़ता है, तो इसे शनि प्रदोष के नाम से जाना जाता है। शनि देव की कृपा होने के कारण इस व्रत को कर्मबन्धन काटने वाला व्रत कहा गया है।
शनि प्रदोष व्रत (Shani Pradosh Vrat 2025) कई प्रकार के संकटों एवं बाधाओं से मुक्ति हेतु किया जाता है। शनिवार के दिन को भगवान शनि शासित करते हैं। धर्मग्रन्थों में भगवान शिव को शनिदेव के गुरु के रूप में वर्णित किया गया है। अतः शनि प्रदोष व्रत को शनि ग्रह से सम्बन्धित विभिन्न दोषों सहित कालसर्प दोष तथा पितृ दोष आदि के निवारण हेतु भी उत्तम माना जाता है।
कब है शनि प्रदोष व्रत?
द्रिक पंचांग के अनुसार, कृष्ण पक्ष के त्रयोदशी तिथि की शुरुआत 24 मई को 19:20 बजे होगा। वहीं इसका समापन 25 मई को 15:51 बजे होगा। प्रदोष व्रत का महत्व शाम को होता है इसलिए शनि कृष्ण प्रदोष व्रत शनिवार, 24 मई को रखा जाएगा। इस दिन प्रदोष पूजा मुहूर्त शाम 19:20 से रात 21:20 मिनट तक है।
शनि प्रदोष व्रत का महत्व
शनि प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है क्योंकि इसमें भगवान शिव और भगवान शनि की शक्तिशाली ऊर्जा का संयोजन होता है। शनिवार को मनाया जाने वाला यह व्रत त्रयोदशी तिथि के साथ मेल खाता है, ऐसा माना जाता है कि यह व्रत बाधाओं, कर्म के बोझ और शनि से संबंधित दोषों जैसे साढ़ेसाती और ढैय्या को दूर करता है। इस दिन भगवान शिव की पूजा करने से भगवान शनि प्रसन्न होते हैं, जिससे जीवन में शांति, अनुशासन और प्रगति आती है। यह व्रत उन लोगों के लिए विशेष रूप से लाभकारी है जो शनि के प्रभाव के कारण चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।
शनि प्रदोष व्रत कालसर्प दोष निवारण का एक बड़ा उपाय है
शनि प्रदोष व्रत कालसर्प दोष के दुष्प्रभावों को कम करने के लिए एक शक्तिशाली उपाय माना जाता है। कालसर्प एक ऐसा दोष है जो जन्म कुंडली में राहु और केतु के बीच सभी ग्रहों के स्थित होने पर बनता है। शनिवार को इस व्रत का पालन करने से भगवान शनि, जो कर्म और न्याय को नियंत्रित करते हैं, और भगवान शिव, जो परम मुक्तिदाता हैं, को शांत करने में मदद मिलती है।
प्रदोष काल के दौरान शनि और शिव की संयुक्त पूजा ग्रहों की ऊर्जा को संतुलित करने, भय को दूर करने और कालसर्प दोष के नकारात्मक प्रभाव को कम करने में मदद करती है, जिससे शांति और सुरक्षा मिलती है।
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