Rohini Vrat 2025: आज है आषाढ़ महीने का रोहिणी व्रत, जानें इसका महत्व
Rohini Vrat 2025: आज आषाढ़ के पवित्र महीने में रोहिणी व्रत मनाया जा रहा है। यह एक महत्वपूर्ण उपवास दिवस है जिसे खास तौर पर जैन समुदाय और कई हिंदू भक्त मनाते हैं। रोहिणी नक्षत्र (Rohini Vrat 2025) के सक्रिय होने के दिन पड़ने वाला यह व्रत अपने गहरे आध्यात्मिक महत्व के लिए जाना जाता है, खास तौर पर शांति, समृद्धि और पारिवारिक खुशहाली चाहने वाली महिलाओं के बीच। जैन धर्म में, इसे मानसिक शुद्धि और आध्यात्मिक उत्थान के लिए एक शक्तिशाली अभ्यास भी माना जाता है।
रोहिणी व्रत का महत्व
रोहिणी व्रत, रोहिणी नक्षत्र से जुड़ा है, जिसे भगवान कृष्ण का प्रिय नक्षत्र माना जाता है और जैन परंपरा में भी इसका बहुत महत्व है। जैन धर्मग्रंथों के अनुसार, रोहिणी व्रत (Rohini Vrat 2025) की शुरुआत हस्तिनापुर के राजा शतानीक की पत्नी रानी श्रीमती ने दुखों से उबरने और राज्य में शांति लाने के लिए की थी। उनकी भक्ति से प्रभावित होकर, दिव्य आशीर्वाद प्राप्त हुआ और यह व्रत आशा, आध्यात्मिक अनुशासन और परिवर्तन का प्रतीक बन गया।
महिलाओं के लिए, यह व्रत वैवाहिक सुख, पारिवारिक सद्भाव और नकारात्मकता से सुरक्षा के लिए विशेष रूप से लाभकारी है। हिंदू मान्यता के अनुसार, रोहिणी व्रत का पालन करने से भगवान विष्णु और चंद्र देव प्रसन्न होते हैं।
रोहिणी व्रत पूजा विधि
उपवास और साफ-सफाई: व्रत रखने वाले भक्त सुबह जल्दी उठते हैं, स्नान करते हैं, साफ या सफेद कपड़े पहनते हैं और पूरी श्रद्धा के साथ व्रत रखने का संकल्प लेते हैं।
वेदी तैयार करना: घर के मंदिर को साफ करके फूलों से सजाया जाता है। भगवान विष्णु या जैन तीर्थंकरों की धूप, दीया, चावल, फल, मिठाई और जल से पूजा की जाती है।
मौन और प्रार्थना का पालन: कई भक्त मौन व्रत रखते हैं या जैन आगम या विष्णु सहस्रनाम सहित मंत्र जाप और आध्यात्मिक पाठ में संलग्न होते हैं।
दान और सेवा: इस दिन जरूरतमंदों को भोजन, कपड़े या दवाइयाँ दान करना शुभ माना जाता है और इससे व्रत का फल कई गुना बढ़ जाता है।
शाम की पूजा और आरती: शाम को आरती की जाती है और कुछ भक्त सूर्यास्त के बाद सात्विक भोजन करते हैं, जबकि अन्य अगली सुबह तक पूर्ण उपवास रखते हैं।
रोहिणी व्रत का आध्यात्मिक दृष्टिकोण
रोहिणी व्रत केवल भोजन से परहेज़ करने के बारे में नहीं है, बल्कि यह आत्म-संयम, आत्मनिरीक्षण और शुद्धि का दिन है। यह भौतिकवाद से अलगाव को बढ़ावा देता है और व्यक्ति की चेतना को ऊपर उठाने में मदद करता है। व्रत का सार करुणा, दया और भक्ति का अभ्यास करने में निहित है - ऐसे मूल्य जो जैन और हिंदू दर्शन में गहराई से प्रतिध्वनित होते हैं।
कई घरों में, विशेष रूप से जैन महिलाओं के बीच, व्रत लगातार पाँच या अधिक रोहिणी नक्षत्र दिनों तक रखा जाता है, जिसका समापन एक विशेष समापन समारोह में होता है।
यह भी पढ़ें: Pitru Paksha 2025: इस दिन से शुरू होगा पितृ पक्ष, जानें श्राद्ध की सभी प्रमुख तिथियां
.