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Ravi Pradosh Vrat 2025: कब है रवि प्रदोष व्रत? जानिए सही तिथि और मुहूर्त

रवि प्रदोष व्रत विशेष महत्व रखता है क्योंकि यह भगवान शिव और सूर्य देव के आशीर्वाद को जोड़ता है।
06:00 AM Jun 07, 2025 IST | Preeti Mishra
रवि प्रदोष व्रत विशेष महत्व रखता है क्योंकि यह भगवान शिव और सूर्य देव के आशीर्वाद को जोड़ता है।

Ravi Pradosh Vrat 2025: प्रदोष व्रत भगवान शिव और देवी पार्वती का आशीर्वाद पाने के लिए मनाया जाने वाला एक पवित्र हिंदू व्रत है। यह चंद्र कैलेंडर में शुक्ल और कृष्ण पक्ष दोनों की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। यह व्रत (Ravi Pradosh Vrat 2025) विशेष रूप से तब शक्तिशाली होता है जब यह सोमवार या शनिवार को पड़ता है।

माना जाता है कि प्रदोष व्रत (Ravi Pradosh Vrat 2025) रखने से पाप दूर होते हैं, शांति मिलती है और मनोकामनाएँ पूरी होती हैं। मंत्रों का जाप करना और भगवान शिव को बिल्व पत्र चढ़ाना पूजा का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

कब है रवि प्रदोष व्रत?

ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 8 जून को सुबह 07:17 मिनट पर शुरू होगी और इसका समापन 9 जून को सुबह 09:35 मिनट पर होगा। उदया तिथि के अनुसार, प्रदोष व्रत रविवार 8 जून को है। रविवार के दिन पड़ने के कारण इसे रवि प्रदोष व्रत कहा जाएगा। यह व्रत ज्येष्ठ माह का आखिरी प्रदोष व्रत होगा। इस दिन शिव पूजा मुहूर्त शाम को 07:18 मिनट से लेकर रात को 09:19 मिनट तक रहेगा।

इस दिन बन रहे हैं तीन शुभ योग

विद्वानों के अनुसार, रवि प्रदोष व्रत के दिन तीन शुभ योगों का निर्माण हो रहा है। इस दिन शिव योग, शिववास योग और स्वाति और विशाखा नक्षत्र का संयोग बन रहा है। रवि प्रदोष व्रत के दिन शिव योग का निर्माण 8 जून को रात 12:19 मिनट पर शुरू होकर 9 जून को दोपहर 01:19 मिनट पर ख़त्म होगा।

वहीं इस दिन शिववास योग के अंतर्गत महादेव 8 जून को सुबह 07:17 मिनट तक कैलाश पर विराजमान रहेंगे। इसके बाद भोलेनाथ नंदी की सवारी करेंगे। यही नहीं, रवि प्रदोष व्रत के दिन स्वाति और विशाखा नक्षत्र का संयोग भी बन रहा है। इन सभी योगों में महादेव की पूजा से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है।

रवि प्रदोष व्रत का महत्व

रवि प्रदोष व्रत विशेष महत्व रखता है क्योंकि यह भगवान शिव और सूर्य देव के आशीर्वाद को जोड़ता है। माना जाता है कि यह व्रत स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं, खासकर हृदय, आंखों और इम्युनिटी से संबंधित समस्याओं से राहत दिलाता है। व्रत को भक्ति के साथ रखने से पिछले कर्म ऋणों को दूर करने और सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करने में मदद मिलती है। भक्त प्रदोष काल (गोधूलि काल) के दौरान व्रत रखते हैं, शिव अभिषेक करते हैं और मंत्रों का जाप करते हैं। रवि प्रदोष को आध्यात्मिक विकास, शत्रुओं से सुरक्षा और दैवीय कृपा से इच्छाओं की पूर्ति के लिए भी शुभ माना जाता है।

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