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Pitru Paksha 2025: कब से शुरू होंगे पितृ पक्ष? नोट करें श्राद्ध की सभी प्रमुख तिथियां

पितृ पक्ष के अनुष्ठान आमतौर पर परिवार में सबसे बड़े बेटे द्वारा किसी पवित्र नदी के पास या गया जैसे पवित्र स्थलों पर किए जाते हैं।
12:42 PM May 12, 2025 IST | Preeti Mishra
पितृ पक्ष के अनुष्ठान आमतौर पर परिवार में सबसे बड़े बेटे द्वारा किसी पवित्र नदी के पास या गया जैसे पवित्र स्थलों पर किए जाते हैं।

Pitru Paksha 2025: पितृ पक्ष हिंदू चंद्र कैलेंडर में 15 दिनों की अवधि है जो श्राद्ध नामक अनुष्ठानों के माध्यम से अपने पूर्वजों का सम्मान करने के लिए समर्पित है। यह आमतौर पर भाद्रपद के महीने के कृष्ण पक्ष में पड़ता है। पितृ पक्ष (Pitru Paksha 2025) में हिंदू अपने दिवंगत पूर्वजों को भोजन, पानी और प्रार्थना अर्पित करते हैं। उनका मानना ​​है कि इससे पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है और जीवित लोगों को आशीर्वाद मिलता है।

पितृ पक्ष के अनुष्ठान आमतौर पर परिवार में सबसे बड़े बेटे द्वारा किसी पवित्र नदी के पास या गया जैसे पवित्र स्थलों पर किए जाते हैं। पितृ पक्ष (Pitru Paksha 2025) कृतज्ञता, सम्मान और कर्म कर्तव्य में विश्वास को दर्शाता है, जो वर्तमान पीढ़ी को उनके पैतृक जड़ों और आध्यात्मिक जिम्मेदारियों से जोड़ता है। पितृ पक्ष का अन्तिम दिन सर्वपितृ अमावस्या या महालय अमावस्या के नाम से जाना जाता है। पितृ पक्ष में महालय अमावस्या सबसे मुख्य दिन होता है।

पितृ पक्ष की प्रमुख तिथियां

सितम्बर 7, 2025, रविवार- पूर्णिमा श्राद्ध
सितम्बर 8, 2025, सोमवार- प्रतिपदा श्राद्ध
सितम्बर 9, 2025, मंगलवार- द्वितीया श्राद्ध
सितम्बर 10, 2025, बुधवार- तृतीया श्राद्ध
सितम्बर 10, 2025, बुधवार- चतुर्थी श्राद्ध
सितम्बर 11, 2025, बृहस्पतिवार- पञ्चमी श्राद्ध
सितम्बर 11, 2025, बृहस्पतिवार- महा भरणी
सितम्बर 12, 2025, शुक्रवार- षष्ठी श्राद्ध
सितम्बर 13, 2025, शनिवार- सप्तमी श्राद्ध
सितम्बर 14, 2025, रविवार- अष्टमी श्राद्ध
सितम्बर 15, 2025, सोमवार- नवमी श्राद्ध
सितम्बर 16, 2025, मंगलवार- दशमी श्राद्ध
सितम्बर 17, 2025, बुधवार- एकादशी श्राद्ध
सितम्बर 18, 2025, बृहस्पतिवार- द्वादशी श्राद्ध
सितम्बर 19, 2025, शुक्रवार- त्रयोदशी श्राद्ध
सितम्बर 19, 2025, शुक्रवार- मघा श्राद्ध
सितम्बर 20, 2025, शनिवार- चतुर्दशी श्राद्ध
सितम्बर 21, 2025, रविवार- सर्वपितृ अमावस्या

पितृ पक्ष में श्राद्ध का महत्व

शास्त्रों और ग्रंथों में वसु, रुद्र और आदित्य को श्राद्ध का देवता बताया गया है। इन दिनों में हर व्यक्ति के तीन पूर्वज पिता, दादा और परदादा क्रमश: वसु, रुद्र और आदित्य माने जाते हैं। जब पितरों का महालय किया जाता है, तब वे (पिता, दादा और परदादा) सभी पितरों के प्रतिनिधि माने जाते हैं। कर्मकांड के दौरान जो भी मंत्रों का जाप किया जाता है या आहुतियां दी जाती हैं, वे सभी अन्य पितरों तक पहुंचाती हैं।

मान्यता है कि पिता, दादा और परदादा श्राद्ध करने वाले व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करते हैं और रीति-रिवाज के अनुसार किए गए कर्मकांड से संतुष्ट होकर परिवार को सुख, समृद्धि और बेहतर स्वास्थ्य का आशीर्वाद देते हैं।

एक वर्ष से अधिक समय से इस दुनिया से मुक्त हुए मृत व्यक्ति को 'पितृ' कहा जाता है। पितृ पक्ष पितरों को भोजन प्रदान करने का एक माध्यम है। मान्यता है कि श्राद्ध में भोजन पाकर पितर विभिन्न माध्यमों से हमारे निकट आते हैं और तृप्त होते हैं।

पितृ पक्ष में कुश और तिल का महत्व

कहा जाता है कि कुश और तिल दोनों ही भगवान विष्णु के शरीर से उत्पन्न हुए हैं। गरुड़ पुराण में कहा गया है कि कुश में ब्रह्मा, विष्णु और शिव का वास होता है। कुश का अग्र भाग देवताओं का माना जाता है। बीच का भाग मनुष्यों का और जड़ पितरों की होती है। तिल पितरों को प्रिय होते हैं और नकारात्मक ऊर्जा को दूर करते हैं। इसलिए श्राद्ध पूजा में कुश और तिल को जरूर शामिल किया जाता है।

पितृ पक्ष में इन चीजों का करें दान

बड़ा सवाल यह है कि पितृ पक्ष में क्या करें। ब्राह्मणों को दान देना बेहद शुभ माना जाता है। इस दिन ब्राह्मणों को खीर पूरी खिलाने के साथ ही गरीबों को भी भोजन कराना चाहिए। इसके साथ ही इस दिन कौओं को भी भोजन कराना चाहिए। इसलिए साधक को थाली में भोजन रखकर कौओं का आह्वान करना चाहिए। इन सबके अलावा श्राद्ध पक्ष में तिल, गाय और सोना दान करने का भी विशेष महत्व है।

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