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Mokshada Ekadashi 2025: दिसंबर में इस दिन है मोक्षदा एकादशी, व्रत से मिलता है मोक्ष

इसी दिन श्रीमद्भगवद्गीता का जन्म हुआ था, इसलिए इसे गीता जयंती के रूप में भी मनाया जाता है।
11:19 PM Nov 19, 2025 IST | Preeti Mishra
इसी दिन श्रीमद्भगवद्गीता का जन्म हुआ था, इसलिए इसे गीता जयंती के रूप में भी मनाया जाता है।

Mokshada Ekadashi 2025: हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का आध्यात्मिक महत्व बहुत अधिक है क्योंकि यह भगवान विष्णु की पूजा के लिए समर्पित है। हर महीने दो एकादशी और साल में 24 एकादशियां आती है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने से मन और शरीर की शुद्धि होती है, पापों का नाश होता है और भक्तों को मोक्ष के मार्ग पर आगे बढ़ने में मदद मिलती है।

इन्ही एकादशी में से एक है मोक्षदा एकादशी। मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोक्षदा एकादशी (Mokshada Ekadashi 2025) कहा जाता है शास्त्रों में इसे मोक्ष प्रदान करने वाली तिथि बताया गया है। इसी दिन श्रीमद्भगवद्गीता का जन्म हुआ था, इसलिए इसे गीता जयंती के रूप में भी मनाया जाता है।

मोक्षदा एकादशी तिथि और पारण का समय

द्रिक पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी की शुरुआत 30 नवंबर को रात 09:29 बजे होगी और इसका समापन 01 दिसम्बर को शाम 07:01 बजे होगा। उदया तिथि के अनुसार, मोक्षदा एकादशी सोमवार, 1 दिसंबर को मनाई जाएगी। जो लोग इस दिन व्रत रखेंगे उनके लिए पारण (व्रत तोड़ने का) समय 2 दिसंबर को सुबह 06:39 बजे से 08:46 बजे तक होगा।

मोक्षदा एकादशी का महत्व

मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष में मनाई जाने वाली मोक्षदा एकादशी, हिंदू धर्म की सबसे आध्यात्मिक रूप से शक्तिशाली एकादशियों में से एक है। ऐसा माना जाता है कि मोक्षदा एकादशी का व्रत करने से भक्तों को मोक्ष, यानी जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिलती है। यह दिन पितृ पापों से मुक्ति दिलाने के लिए भी जाना जाता है और पितरों के लिए कर्मकांड करना अत्यंत शुभ माना जाता है।

इस दिन भगवान विष्णु की पूजा, भगवद्गीता का पाठ और दान-पुण्य करने से अपार पुण्य की प्राप्ति होती है। भक्तों का मानना ​​है कि इस पवित्र व्रत को करने से मनोकामनाएँ पूरी होती हैं, पिछले कर्मों का बोझ उतरता है और शांति, समृद्धि और आध्यात्मिक उत्थान सुनिश्चित होता है।

मोक्षदा एकादशी व्रत कथा

प्राचीन काल में वैखानस नामक एक राजा ने स्वप्न में अपने दिवंगत पिता को नरक में कष्ट भोगते देखा। अत्यंत व्यथित होकर वह ऋषि पर्वत के पास गए, जिन्होंने उन्हें बताया कि केवल मोक्षदा एकादशी व्रत ही उनके पिता को इस कष्ट से मुक्ति दिला सकता है। राजा ने पूर्ण श्रद्धा से एकादशी व्रत रखा, भगवान विष्णु की पूजा की और ब्राह्मणों को अन्न, वस्त्र और गाय दान की।

राजा के सच्चे मन से किए गए व्रत और दान के फलस्वरूप उनके पिता नरक से मुक्त हुए और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई। उसी दिन से मोक्षदा एकादशी को मोक्ष, शांति और पापों से मुक्ति प्रदान करने वाली एकादशी के रूप में जाना जाने लगा।

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