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Masik Kalashtami 2024 Vrat Katha: इस कथा के बिना अधूरी है काल भैरव की पूजा साथ ही करें इन मंत्रों का जाप

Masik Kalashtami 2024 Vrat Katha: हर महीने कृष्ण पक्ष अष्टमी की तिथि को कालाष्टमी (Masik Kalashtami 2024 Vrat Katha) का व्रत रखा जाता है। यह दिन भगवान शिव के रौद्र रूप काल भैरव को समर्पित होता है। इस दिन भक्तों...
06:20 PM Feb 28, 2024 IST | Juhi Jha
Masik Kalashtami 2024 Vrat Katha: हर महीने कृष्ण पक्ष अष्टमी की तिथि को कालाष्टमी (Masik Kalashtami 2024 Vrat Katha) का व्रत रखा जाता है। यह दिन भगवान शिव के रौद्र रूप काल भैरव को समर्पित होता है। इस दिन भक्तों...
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Masik Kalashtami 2024 Vrat Katha: हर महीने कृष्ण पक्ष अष्टमी की तिथि को कालाष्टमी (Masik Kalashtami 2024 Vrat Katha) का व्रत रखा जाता है। यह दिन भगवान शिव के रौद्र रूप काल भैरव को समर्पित होता है। इस दिन भक्तों द्वारा व्रत और विधि विधान के साथ काल भैरव की पूजा की जाती है। धार्मिक मतों के अनुसार इस दिन विधिवत रूप से पूजा और व्रत करने से व्यक्ति को समस्त परेशानियों से छुटकारा मिलता है। इस साल फाल्गुन माह में मासिक कालाष्टमी का व्रत 03 मार्च 2023, रविवार के दिन रखा जाएगा। लेकिन इस दिन बिना कथा के कालाष्टमी का व्रत अधूरा माना जाता है। तो आइए जानते है मासिक कालाष्टमी व्रत कथा :-

मासिक कालाष्टमी व्रत कथा:-

 

पौराणिक ग्रंथों में मासिक कालाष्टमी व्रत (Masik Kalashtami 2024 Vrat Katha) कथा का ​वर्णन किया गया है। पौराणिक कथा और मान्यताओं के अनुसार एक बार भगवान विष्णु और ब्रह्मा के बीच में सबसे श्रेष्ठ कौन है इस बात का विवाद छिड़ गया। यह विवाद इतना ज्यादा बढ़ गया कि सभी देवता घबरा गए कि विवाद की वजह से प्रलय आने वाला है। सभी देव घबरा कर भगवान शिव के पास पहुंचे और उन्हें सभी हाल बताया और सभी देवता इस समस्या का समाधान ढूंढ़ने में लग गए। तभी भगवान शिव ने एक सभा का आयोजन किया और उस सभा में ऋषि-मुनि, सिद्ध संत , ज्ञानी, सभी देवतागण और विष्णु व ब्रह्मा जी को भी निमंत्रण दिया गया​।

सभा के दौरान एक निर्णय पर भगवान विष्णु तो स्वीकार कर लेते है लेकिन ब्रह्मा जी उस निर्णय से संतुष्ट नहीं थे इस वजह से वह भगवान शिव का सभी लोगों के सामने अपमान करने लगते है। ब्रह्मा जी द्वारा किए गए अपमान को भगवान शिव सहन नहीं कर पाते और दूसरा रौद्र रूप धारण कर लेते है। जब भगवान अपने रौद्र रूप में आए तो सभी देवतागण उनके इस स्वरूप को देखकर घबरा गए। भगवान शिव के इसी रौद्र रूप में भगवान भैरव प्रकट हुए जो एक श्वान पर सवार थे। उनके एक हाथ में दंड था जिसकी वजह से वह ‘दंडाधिपति’ कहलाएं। भैरव का रौद्र रूप विकराल और भयंकर था। उन्होंने क्रोध में आकर ब्रह्म देव के पांचवें सिर को काट दिया।

 

तब भगवान शिव ने भैरव जी से कहा कि तुम पर ब्रह्म हत्या का दोष लग चुका है जिसकी वजह से तुम्हे अब सामान्य मनुष्य की तरह तीनों लोकों का भ्रमण करना होगा ओर जिस स्थान पर तुम्हारे हाथ से यह शीश छूठ जाएगा वहीं पर तुम इस पाप से मुक्त हो जाओगे। भगवान की आज्ञा मान भैरव जी तीनों लोकों की यात्रा पर निकल गए। यात्रा करने के बाद वह काशी पहुंचे। काशी के गंगा के तट पर पहुंचे ही थे कि वहां पर भैरव जी के हाथ ब्रह्मा जी का शीश छूट गया और उन्हें पापों से मुक्ति मिल गई। इसके बाद भगवान शिव ने काल भैरव को अपना आशीर्वाद दिया और उन्हें वही पर तप करने का आदेश दिया और कहा कि अब से इस नगर के कोतवाल कहलाओगे और इसी रूप में सदियों तक पूजे जाओगे।

इन मंत्रों का करें जाप:-

1. 'भैरवाय नमः'

2. ॐ ह्रीं वं भैरवाय नमः

3. भैरवाय नमस्कृतोऽस्तु भैरवाय स्वाहा

4. ॐ बतुकाय आपदुद्धारणाय कुरु कुरु बतुकाय हुं फट् स्वाहा

5.ॐ ह्रीं बगलामुखाय पंचास्य स्तम्भय स्तम्भय मोहय मोहय मायामुखायै हुं फट् स्वाहा

6. ॐ नमो नरसिंह भैरवाय अमुकं मम वशमानय स्वाहा

7.ॐ ह्रीं नमो भगवते भैरवाय आपदुद्धारणाय कुरु कुरु भगवान्

8.ॐ भैरवाय फट्

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