Mangala Gauri Vrat 2025: सावन में मंगला गौरी व्रत का भी है बहुत महत्व, जानें किसकी होती है इसमें पूजा
Mangala Gauri Vrat 2025: सावन का पवित्र महीना न केवल भगवान शिव की पूजा के लिए जाना जाता है, बल्कि विवाहित महिलाओं द्वारा किए जाने वाले महत्वपूर्ण व्रत- मंगला गौरी व्रत (Mangala Gauri Vrat 2025) के लिए भी जाना जाता है। सावन महीने के मंगलवार को मनाया जाने वाला यह व्रत वैवाहिक सुख, पारिवारिक शांति और पति की लंबी आयु के लिए बेहद शुभ माना जाता है।
इस दिन महिलाएं देवी गौरी की भक्ति के साथ पूजा करती हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए पूरे दिन उपवास रखती हैं। आइए जानें कि मंगला गौरी व्रत (Mangala Gauri Vrat 2025) में किसकी पूजा की जाती है, इसका आध्यात्मिक महत्व क्या है और यह सावन के अनुष्ठानों का एक अनिवार्य हिस्सा क्यों है।
मंगला गौरी व्रत में किसकी पूजा की जाती है?
इस व्रत में भगवान शिव की पत्नी देवी गौरी की उनके मंगला (शुभ) रूप में पूजा की जाती है। वह समृद्धि, उर्वरता, भक्ति और वैवाहिक सुख का प्रतीक हैं। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को पूरी आस्था के साथ करने से महिलाओं को वही सुख-सौभाग्य (खुशी और सौभाग्य) प्राप्त होता है जो देवी पार्वती को स्वयं प्राप्त हुआ था।
इस व्रत में भगवान शिव, भगवान गणेश और नवग्रह देवताओं की पूजा भी की जाती है ताकि व्यक्ति के जीवन में ग्रह संबंधी बाधाएं दूर हो सकें।
मंगला गौरी व्रत क्यों मनाया जाता है?
यह व्रत मुख्य रूप से विवाहित महिलाओं द्वारा निम्न कारणों से किया जाता है:
अपने पति की लंबी आयु और खुशहाली
एक खुशहाल वैवाहिक जीवन
वैवाहिक समस्याओं और घरेलू तनाव को दूर करना
संतान प्राप्ति का आशीर्वाद
एक अच्छे जीवनसाथी को आकर्षित करना
किंवदंतियों के अनुसार, मंगला गौरी व्रत करने से दस गुना आध्यात्मिक पुण्य मिलता है और यह कई यज्ञों और तीर्थयात्राओं के बराबर है।
मंगला गौरी व्रत पूजा कैसे की जाती है?
मंगला गौरी व्रत पूजा श्रावण मास के सभी मंगलवार को की जाती है। देवी गौरी की मूर्ति या चित्र को लाल कपड़े पर रखकर कुमकुम, हल्दी, फूल, सुपारी और मिठाई से पूजा की जाती है। आमतौर पर 16 सुहागिन महिलाओं को आमंत्रित किया जाता है और उन्हें उपहार और भोजन दिया जाता है। सुहागिनों को मंगला गौरी कथा सुनाई जाती है। शाम को देवी के सामने दीप जलाए जाते हैं।
मंगला गौरी व्रत का आध्यात्मिक महत्व
मंगला गौरी व्रत केवल एक धार्मिक प्रथा नहीं है, बल्कि स्त्री शक्ति, प्रेम और त्याग का प्रतीक है। यह पति-पत्नी के बीच के बंधन को मजबूत करता है और घर में मानसिक शांति, स्वास्थ्य और स्थिरता लाता है।
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