Shardiya Navratri Day 2: माँ ब्रह्मचारिणी की होगी आज पूजा, जानें समय, महत्व, रंग और पूजा विधि
Shardiya Navratri Day 2: देवी दुर्गा की भक्ति को समर्पित शारदीय नवरात्रि की शुरुआत 22 सितंबर से हुई है और इसका समापन 2 अक्टूबर को दशहरा या विजयादशमी के दिन होगा। आज 23 सितंबर, दिन मंगलवार को नवरात्रि का दूसरा दिन (Shardiya Navratri Day 2) माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा का दिन है। उनका आशीर्वाद दीर्घायु और पूर्ण जीवन सुनिश्चित करता है और अकाल मृत्यु की संभावना को कम करता है। नवरात्रि के दूसरे दिन का महत्व, शुभ मुहूर्त, रंग और पूजा विधि जानने के लिए आगे पढ़ें।
माँ ब्रह्मचारिणी कौन हैं, जानिए उनकी कथा
माँ ब्रह्मचारिणी देवी दुर्गा का दूसरा अवतार हैं और वे देवी पार्वती के अविवाहित रूप का प्रतिनिधित्व करती हैं। इस रूप को नंगे पैर महिला के रूप में दर्शाया गया है, जिसके दाहिने हाथ में जप माला और बाएँ हाथ में कमंडल है। द्रिक पंचांग के अनुसार, देवी ने भगवान शिव से विवाह करने के लिए कई हज़ार वर्षों तक कठोर तपस्या की, जिसमें उन्होंने केवल फूल, फल और पत्तेदार सब्ज़ियों का आहार लिया। उन्होंने कठोर जलवायु परिस्थितियों में खुद को उजागर करते हुए भगवान शिव की पूजा करते हुए कठोर उपवास का पालन किया।
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, उन्होंने कुछ समय तक बिना भोजन या जल के भी बिताया, जिसके बाद उन्हें अपर्णा के नाम से जाना जाने लगा। अंततः वे भगवान शिव को प्रसन्न करने में सफल रहीं, लेकिन उनके मिलन के कारण उन्होंने अगले जन्म में अपने पति - भगवान शिव - का सम्मान करने वाले पिता की कामना से आत्मदाह कर लिया।
उन्हें माँ ब्रह्मचारिणी (Shardiya Navratri Day 2) के नाम से जाना जाता है क्योंकि उनकी तपस्या के अंतिम चरण में, भगवान शिव ने उनकी भक्ति की परीक्षा लेने के लिए ब्रह्मचारी का वेश धारण किया था। द्रिक पंचांग के अनुसार, देवी का संबंध भगवान मंगल से है, जो समस्त सौभाग्य के प्रदाता हैं और उनके स्वामी ग्रह हैं। नवरात्रि के दौरान उनकी पूजा करने से मन की शांति मिलती है, भक्तों में संयम और दृढ़ता का संचार होता है। यह आत्म-संयम, पवित्रता और अटूट भक्ति के महत्व पर बल देता है। उनका आशीर्वाद भक्तों को दिव्य ज्ञान और आध्यात्मिक विकास के मार्ग पर ले जाता है, जिससे उन्हें जीवन की चुनौतियों का धैर्य और दृढ़ संकल्प के साथ सामना करने में मदद मिलती है।
नवरात्रि के दूसरे दिन के शुभ मुहूर्त
द्रिक पंचांग के अनुसार, नवरात्रि के दूसरे दिन (Shardiya Navratri Day 2) के सभी शुभ मुहूर्त निम्नलिखित हैं।
ब्रह्म मुहूर्त: प्रातः 04:35 से प्रातः 05:22 तक
प्रातः संध्या: प्रातः 04:59 से प्रातः 06:10 तक
अभिजीत: सुबह 11:49 से दोपहर 12:37 तक
विजय मुहूर्त: दोपहर 02:14 बजे से 03:03 बजे तक
गोधूलि मुहूर्त: शाम 06:16 बजे से शाम 06:40 बजे तक
सायंकाल संध्या: शाम 06:16 बजे से शाम 07:28 बजे तक
अमृत काल: प्रातः 07:06 से प्रातः 08:51 तक
निशिता मुहूर्त: रात 11:50 बजे से 12:37 बजे तक, 24 सितंबर
द्विपुष्कर योग: 24 सितंबर दोपहर 01:40 बजे से सुबह 04:51 बजे तक
नवरात्रि के दूसरे दिन का शुभ रंग
नवरात्रि के दूसरे दिन के लिए शुभ रंग लाल है। नवरात्रि के अनुष्ठानों और उत्सवों में लाल रंग पहनने की सलाह दी जाती है क्योंकि यह जोश और प्रेम का प्रतीक है। देवी को चढ़ाई जाने वाली चुनरी का भी लाल रंग पसंदीदा है, और यह पहनने वाले को शक्ति और स्फूर्ति से भर देता है, जिससे देवी का आशीर्वाद, दीर्घायु और संपूर्ण जीवन की प्राप्ति होती है।
मां ब्रह्मचारिणी का मंत्र
मां ब्रह्मचारिणी का बीज मंत्र है "ह्रीं श्री अम्बिकायै नमः।' उनकी पूजा के दौरान इसका जप जरूर करें। 'या देवी सर्वभूतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः" मंत्र का जाप करना भी शुभ माना जाता है।
नवरात्रि के दूसरे दिन की पूजा विधि
माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा करने की विधि इस प्रकार है:
तैयारी: पूजा के लिए एक शुभ मुहूर्त चुनें और पूजा स्थल को एक साफ कपड़े से अच्छी तरह साफ़ करें। सारी सामग्री इकट्ठा करें।
कलश स्थापना: पवित्र कलश को वेदी पर जल, पान और सुपारी से भरकर रखें। कलश के ऊपर एक नारियल रखें, उसे आम के पत्तों से ढक दें और शुद्धिकरण के लिए गंगाजल छिड़कें।
मूर्ति या चित्र: माँ ब्रह्मचारिणी की मूर्ति या चित्र को वेदी पर स्थापित करें और उसे फूलों और लाल चुनरी से सजाएँ।
पूजा सामग्री: मूर्ति या चित्र के माथे पर कुमकुम का तिलक लगाएँ। रोली और कुमकुम के साथ चावल के दाने, सफेद फूल या कमल के फूल चढ़ाएँ। घी का दीया, धूप और अगरबत्ती जलाएँ और देवी को अर्पित करें। इसके बाद दूध, दही, घी, शहद और चीनी का मिश्रण, जिसे पंचामृत कहते हैं, अर्पित करें।
मंत्र जाप: देवी को समर्पित मंत्र - "ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः" - का 108 बार जाप करें।
आरती और प्रार्थना: कपूर से आरती करें और उसके बाद देवी को समर्पित भक्ति गीत, भजन और प्रार्थनाएँ करें।
प्रसाद वितरण: देवी को प्रसाद (मिठाई या फल) चढ़ाएँ और परिवार के सदस्यों और भक्तों में वितरित करें।
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