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Lalita Jayanti 2024: माघ पूर्णिमा के दिन मनाई जाएगी ललिता जयंती, जानें इसका महत्व और कथा

राजस्थान (डिजिटल डेस्क)। Lalita Jayanti 2024: हर साल माघ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि ( Lalita Jayanti 2024) पर ललिता जयंती मनाई जाती है। यह दिन माता सती का ही रूप माता ललिता को समर्पित माना जाता है।...
03:09 PM Feb 23, 2024 IST | Juhi Jha
राजस्थान (डिजिटल डेस्क)। Lalita Jayanti 2024: हर साल माघ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि ( Lalita Jayanti 2024) पर ललिता जयंती मनाई जाती है। यह दिन माता सती का ही रूप माता ललिता को समर्पित माना जाता है।...

राजस्थान (डिजिटल डेस्क)। Lalita Jayanti 2024: हर साल माघ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि ( Lalita Jayanti 2024) पर ललिता जयंती मनाई जाती है। यह दिन माता सती का ही रूप माता ललिता को समर्पित माना जाता है। इस दिन माता ललिता की विधि विधान के साथ पूजा की जाती है। हिंदू शास्त्र के अनुसार माता ललिता दस महाविद्याओं में से तीसरी महाविद्या मानी जाती है। कहा जाता है कि व्यक्ति द्वारा सच्चे मन से माता ​ललिता की पूजा करने से मां का आशीर्वाद प्राप्त होता है। लेकिन मां की पूजा व्रत कथा के बिना अधूरी मानी जाती है। ऐसे में आइए जानते है क्या है इस व्रत का महत्व और व्रत कथा :-

ललिता जयंती शुभ मुहूर्त :-

 

माघ माह की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि का प्रांरभ 23 फरवरी को दोपहर 03 बजकर 33 मिनट से शुरू होकर अगले दिन यानी 24 फरवरी दोपहर 05 बजकर 59 मिनट पर समाप्त होगा। उदयातिथि के अनुसार ललिता जयंती 24 फरवरी,शनिवार के दिन मनाई जाएगी।

क्या है ललिता जयंती का महत्व :-

माता ललिता को माता सती का ही रूप माना जाता है। मां ललिता को षोडशी, त्रिपुर सुंदरी और राजेश्वरी के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि ललिता जयंती के दिन मां ललिता की पूजा करने से व्यक्ति सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्त कर सकता है साथ ही व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

जानें ललिता जयंती व्रत कथा :-

पौराणिक कथा के अनुसार मां सती और भगवान शिव का विवाह होने के बाद एक ​बार मां सती के पिता राजा दक्ष ने अपने ​घर पर एक यज्ञ का आयोजन करवाया। इस यज्ञ में उन्होंने भगवान शिव को छोड़ सभी देवतागण को आमंत्रित किया था। लेकिन माता सती यज्ञ में जाना चाहती थी। भगवान शिव के मना करने के बाद भी उनसे अनुमति लिए बिना यज्ञ में पहुंच गई। वहां पर राजा दक्ष ने शिव भगवान का काफी अपमान किया जो मां सती ने सुन लिया।

 

अपने पिता द्वारा अपने पति का अपमान सुन मां सती खुद को अपमानित महसूस करने लगी ओर उन्होंने उसी यज्ञ के अग्नि कुंड में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए।जब शिव को इस बात का पता चला वह बेहद क्रोधित हो गए। उन्होंने मां सती के शव को अपने गोदी में उठाया और उन्मत्त भाव से इधर उधर घूमने लगे। इस दौरान पूरे विश्व की व्यवस्था छिन्न भिन्न होने लगी। स्थिति को संभालने के लिए भगवान विष्णु ने अपने चक्र से मां सती के शव के टुकड़े कर दिए।

जहां जहां पर मां सती के शव के टुकड़े गिरे उन्हीं आकृतियों के रूप में मां सती उस स्थान पर विराजमान हो गई। आज उन स्थानों को शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है और इन्हीं एक स्थान में से मां ललिता का स्थान भी है। कहा जाता है कि नैमिषारण्य स्थान पर मां सती का हृदय गिरा था। इस स्थान को लिंग्धारिणी शक्तिपीठ स्थल का रूप माना जाता है। इसी स्थान पर मां ललिता की पूजा की जाती है। मान्यताओं के अनुसार नैमिष में लिंग्धारिणी नाम से प्रसिद्ध माता को ललिता देवी के नाम से जाना जाता है।

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