Kashibugga Venkateswara Temple: आंध्र प्रदेश स्थित इस मंदिर का बहुत है महत्व, जानें इसका इतिहास
Kashibugga Venkateswara Temple: आज देवउठनी एकादशी के पवित्र दिन, आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले के काशीबुग्गा कस्बे में स्थित काशीबुग्गा वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर (Kashibugga Venkateswara Temple) में एक भगदड़ मच गई, जिसमें कई महिलाओं और बच्चों सहित 9-10 श्रद्धालुओं की मौत हो गई और दर्जनों घायल हो गए।
प्रारंभिक रिपोर्टों के अनुसार, पवित्र एकादशी पर विशेष दर्शन के लिए मंदिर में श्रद्धालुओं की अप्रत्याशित रूप से भारी भीड़ उमड़ पड़ी, और भीड़ प्रबंधन की अपर्याप्त व्यवस्था के कारण अव्यवस्था फैल गई। स्थानीय अधिकारियों ने घटना की जाँच (Kashibugga Venkateswara Temple) के आदेश दे दिए हैं।
आइए जानते हैं क्यों इसे दक्षिण भारत के प्रसिद्ध और प्राचीन मंदिरों में से एक माना जाता है। और क्यों हर साल यहां लाखों श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए पहुंचते हैं।
मंदिर का संक्षिप्त इतिहास
काशीबुग्गा वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर (जिसे स्थानीय रूप से "चिन्ना तिरुपति" भी कहा जाता है) भगवान वेंकटेश्वर को समर्पित एक क्षेत्रीय मंदिर है, जो भगवान विष्णु के एक रूप हैं और जिनकी पारंपरिक रूप से तिरुपति के प्रसिद्ध तिरुमाला वेंकटेश्वर मंदिर में पूजा की जाती है। काशीबुग्गा वेंकटेश्वर मंदिर का निर्माण 11वीं से 12वीं शताब्दी के बीच माना जाता है।
हालाँकि इस मंदिर में अपने समकक्ष मंदिर जैसी सदियों पुरानी प्रलेखित भव्यता का अभाव है, फिर भी इसका स्थानीय धार्मिक महत्व बहुत गहरा है: एकादशी के दिन, कई भक्त यहाँ मनोकामना पूर्ति और समृद्धि एवं शुद्धि का आशीर्वाद प्राप्त करने की मान्यता के साथ आते हैं। हाल के वर्षों में, विशेष रूप से एकादशी जैसे शुभ दिनों पर, जब दर्शन के लिए कतारें काफी लंबी हो जाती हैं, मंदिर की लोकप्रियता बढ़ी है।
तिरुपति बालाजी मंदिर से इसकी तुलना
तिरुपति स्थित तिरुमाला वेंकटेश्वर मंदिर भारत के सबसे प्रसिद्ध विष्णु मंदिरों में से एक है, जहाँ प्रतिवर्ष लाखों लोग आते हैं, और इसका प्रबंधन आधुनिक कतार परिसरों, तीर्थयात्रियों के लिए निःशुल्क आवास और नियमित दर्शन प्रणालियों सहित व्यापक बुनियादी ढाँचे द्वारा किया जाता है।
इसके विपरीत, काशीबुग्गा मंदिर बहुत छोटा है और औपचारिक रूप से कम नियंत्रित है, फिर भी यह उसी देवता से जुड़े होने और स्थानीय संदर्भ में "तिरुपति का आशीर्वाद प्राप्त" होने की मान्यता के कारण बड़ी संख्या में भक्तों को आकर्षित करता है। इसी समानता के कारण इसे यह उपनाम मिला है और इसका अर्थ यह भी है कि त्योहारों या पवित्र दिनों में, भीड़ का उमड़ना बहुत ज़्यादा हो सकता है, हालाँकि बुनियादी ढाँचा तिरुपति के पैमाने के बराबर नहीं हो सकता। यह दुखद भगदड़ उन जोखिमों को रेखांकित करती है जब छोटे मंदिरों में बड़ी भीड़ सुरक्षा योजना से ज़्यादा होती है।
कैसे पड़ा काशीबुग्गा नाम?
मंदिर से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं हैं। उन्ही में से एक एक अनुसार, एक बार भगवान विष्णु ने काशी जाने की इच्छा प्रकट की। लेकिन वो इस स्थान पर पहुंच गए। यहाँ पर पंहुचने के बाद उन्होंने महसूस किया कि यह स्थान दिव्यता से भरपूर है और यह काशी (वाराणसी) के समान ही पवित्र है। इसलिए इस जगह का नाम काशीबुग्गा पड़ा यानी दक्षिण का काशी। भगवान ने यहां वेंकटेश्वर रूप में प्रकट होकर यह वरदान दिया कि जो भी भक्त सच्चे मन से उनकी पूजा करेगा, उसके जीवन से सभी संकट दूर होंगे और उसे मोक्ष की प्राप्ति होगी। इसीलिए एकादशी के दिन इस मंदिर में भारी भीड़ एकत्रित होती है।
एकादशी पर इस मंदिर में भीड़ क्यों होती है?
देवउठनी एकादशी चातुर्मास काल के अंत का प्रतीक है, जब भगवान विष्णु अपनी चार महीने की निद्रा से जागते हैं। इस दिन, पूरे भारत में भक्त पवित्र स्नान, उपवास और विशेष दर्शन करते हैं। काशीबुग्गा वेंकटेश्वर मंदिर में:
- भक्तों का मानना है कि इस पवित्र एकादशी पर मंदिर में दर्शन करने से स्वास्थ्य, धन और पापों से मुक्ति का विशेष आशीर्वाद मिलता है।
- मंदिर में अक्सर एकादशी पर विशेष पूजा और दर्शन की अनुमति होती है, जिससे सामान्य से कहीं अधिक तीर्थयात्री आते हैं।
- त्योहार की भावना और क्षेत्रीय भक्ति का मेल पूरे परिवारों और समूहों को आकर्षित करता है, जिससे भीड़ का घनत्व नाटकीय रूप से बढ़ जाता है।
- शीघ्र आशीर्वाद प्राप्त होने की मान्यता के कारण कई लोग सुबह-सुबह दर्शन के लिए आते हैं, जिससे भीड़ और व्यवस्था संबंधी दबाव बढ़ जाता है।
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