Kanya Pujan on Mahanavami: महानवमी पर कन्या पूजन क्यों माना जाता है शुभ? आप भी जानें
Kanya Pujan on Mahanavami: माँ दुर्गा को समर्पित नौ दिवसीय उत्सव, नवरात्रि, महानवमी पर बड़ी श्रद्धा के साथ संपन्न होता है, जो इस वर्ष बुधवार, 1 अक्टूबर को पड़ रही है। इस दिन किए जाने वाले सबसे पवित्र अनुष्ठानों में से एक है कन्या पूजन या कंजक पूजा, जहाँ नौ युवतियों को देवी दुर्गा के नौ रूपों के रूप में पूजा (Kanya Pujan on Mahanavami) जाता है।
ऐसा माना जाता है कि यह सदियों पुरानी परंपरा भक्तों के जीवन में माँ दुर्गा का आशीर्वाद, समृद्धि और दिव्य कृपा लाती है। महानवमी पर नौ कन्याओं की पूजा (Kanya Pujan on Mahanavami) इतनी शुभ क्यों मानी जाती है? आइए इस पवित्र प्रथा के पीछे के आध्यात्मिक अर्थ, अनुष्ठानों और महत्व को जानें।
कन्या पूजन का महत्व
हिंदू धर्म में, छोटी कन्याओं को दिव्य ऊर्जा या शक्ति का शुद्धतम रूप माना जाता है। कन्या पूजन के दौरान नौ कन्याओं की पूजा माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों - शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री - का प्रतीक है। भक्तों का मानना है कि इनका सम्मान करके, व्यक्ति स्वयं देवी की पूजा करता है।
यह अनुष्ठान एक शक्तिशाली संदेश भी देता है: यह समाज को महिलाओं के सम्मान और पोषण के महत्व की याद दिलाता है, जो शक्ति, करुणा और सृजन का प्रतीक हैं।
नौ कन्याएँ क्यों?
हिंदू धर्म में नौ अंक का गहरा आध्यात्मिक महत्व है, जो पूर्णता और अनंत काल का प्रतीक है। नवरात्रि के दौरान, प्रत्येक दिन माँ दुर्गा के एक अलग रूप को समर्पित होता है, और नौवें दिन - महानवमी - इन सभी रूपों की ऊर्जा का एक साथ आह्वान किया जाता है। नौ कन्याओं की पूजा इस पूर्णता को दर्शाती है और ऐसा माना जाता है कि यह स्वास्थ्य और धन से लेकर ज्ञान और आध्यात्मिक विकास तक, सभी प्रकार की समृद्धि को आमंत्रित करती है।
कन्या पूजन अनुष्ठान
कन्या पूजन श्रद्धा और पवित्रता के साथ किया जाता है। पारंपरिक रूप से इस अनुष्ठान का पालन इस प्रकार किया जाता है:
कन्याओं को आमंत्रित करना - नौ छोटी कन्याओं, जिनकी उम्र आमतौर पर 2 से 10 वर्ष के बीच होती है, को घर में आमंत्रित किया जाता है। कभी-कभी उनके साथ एक छोटे लड़के, जिसे लंगूरा कहा जाता है, की भी पूजा की जाती है।
उनके पैर धोना - भक्त विनम्रता और सम्मान का प्रतीक कन्याओं के पैर धीरे से धोते हैं, क्योंकि उन्हें देवी का जीवित रूप माना जाता है।
भोग लगाना - एक पारंपरिक भोग तैयार किया जाता है, जिसमें पूरी, काला चना और सूजी का हलवा शामिल होता है। इसे कन्याओं को प्रेम और भक्ति के साथ अर्पित किया जाता है।
तिलक लगाना और कलावा बाँधना - कन्याओं के माथे पर लाल तिलक लगाया जाता है और उनकी कलाई पर पवित्र धागा (कलावा) बाँधा जाता है।
दक्षिणा और उपहार देना - पूजा का समापन आभार और आशीर्वाद के प्रतीक के रूप में छोटे उपहार, पैसे या कपड़े भेंट करके किया जाता है।
कन्या पूजन के आध्यात्मिक लाभ
महानवमी पर कन्या पूजन करने से जीवन में अनेक आशीर्वाद प्राप्त होते हैं। भक्तों का मानना है कि जब वे श्रद्धापूर्वक यह अनुष्ठान करते हैं, तो माँ दुर्गा उनकी मनोकामनाएँ पूरी करती हैं। ऐसा कहा जाता है कि यह नकारात्मकता और बाधाओं को दूर करता है, जिससे सफलता और सुख का मार्ग प्रशस्त होता है। दुर्गा के नौ रूपों की पूजा करने से घर में समृद्धि, शांति और सद्भाव का वास होता है। कन्या पूजन सुनिश्चित करता है कि माँ दुर्गा की दिव्य उपस्थिति पूरे वर्ष भक्त और उनके परिवार के साथ बनी रहे।
आधुनिक समय की प्रासंगिकता
अपने धार्मिक पहलू से परे, कन्या पूजन समाज में महिलाओं के महत्व की याद दिलाता है। ऐसे समय में जब लैंगिक समानता अभी भी एक चुनौती है, यह अनुष्ठान इस विचार को पुष्ट करता है कि महिलाएँ दिव्य हैं और सम्मान, प्रेम और आदर की पात्र हैं।
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