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Jitiya Vrat 2025: जितिया व्रत कब है, कौन रखता है इस व्रत को? जानें सबकुछ

इस व्रत की शुरुआत नहाय-खाय से होती है, जिसके बाद मुख्य दिन निर्जला व्रत रखा जाता है।
12:25 PM Aug 20, 2025 IST | Preeti Mishra
इस व्रत की शुरुआत नहाय-खाय से होती है, जिसके बाद मुख्य दिन निर्जला व्रत रखा जाता है।
Jitiya Vrat 2025

Jitiya Vrat 2025: जितिया या जीवित्पुत्रिका व्रत एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है जो मुख्यतः बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल में माताओं द्वारा अपनी संतान की दीर्घायु और कल्याण के लिए मनाया जाता है। यह आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि (Jitiya Vrat 2025) को पड़ता है।

इस व्रत की शुरुआत नहाय-खाय से होती है, जिसके बाद मुख्य दिन निर्जला व्रत रखा जाता है। इस दिन लोग त्याग और सुरक्षा के प्रतीक भगवान जीमूतवाहन की पूजा करते हैं। व्रत का समापन अगले दिन पारण के साथ होता है। महिलाओं का मानना है कि जितिया व्रत (Jitiya Vrat 2025) रखने से उनकी संतान को स्वास्थ्य, समृद्धि और दीर्घायु का आशीर्वाद मिलता है।

कब है जितिया व्रत?

जितिया या जीवित्पुत्रिका व्रत आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रखा जाता है। आश्विन महीने की अष्टमी तिथि का प्रारम्भ 14 सितम्बर को सुबह 05:04 बजे होगा। वहीं इसका समापन 15 सितम्बर को भोर में 03:06 मिनट पर होगा। ऐसे में यह व्रत रविवार, सितम्बर 14, को रखा जायेगा।

कौन रखता है यह व्रत?

जितिया व्रत एक अत्यन्त महत्वपूर्ण उपवास दिवस है। जीवित्पुत्रिका व्रत में, माताएँ अपनी सन्तानों की सुरक्षा व स्वास्थ्य के लिये पूरे दिन तथा पूरी रात तक निर्जला उपवास करती हैं। यह व्रत भगवान जीमूतवाहन को समर्पित है, जिनकी पूजा रक्षक और रक्षक के रूप में की जाती है। माताओं का मानना है कि इस कठोर व्रत को रखकर वे अपने बच्चों को खतरों, दुर्भाग्य और अकाल मृत्यु से बचा सकती हैं। इसे एक माँ के त्याग और निस्वार्थ प्रेम का प्रतीक भी माना जाता है, जहाँ उसकी प्रार्थना और धैर्य उसकी संतान की भलाई और सफलता सुनिश्चित करते हैं।

नहाय-खाय से शुरू होता है यह व्रत

यह व्रत नहाय-खाय से शुरू होता है। इस दिन व्रती महिलाएँ स्नान करके शुद्ध भोजन ग्रहण करती हैं। विशेष रूप से, नोनी साग और मरुआ रोटी खाई जाती है। इसे सात्विक और पारंपरिक भोजन माना जाता है। इस भोजन के बाद ही अगले दिन के निर्जला व्रत का संकल्प लिया जाता है।

व्रत के दिन, महिलाएँ सूर्योदय से पहले स्नान करती हैं और पूरे दिन बिना पानी पिए उपवास रखती हैं। पूजा के दौरान, भगवान जीमूतवाहन की पूजा की जाती है और चील-सियार की कथाएँ सुनी जाती हैं। रात में चाँद देखने के बाद भी यह व्रत नहीं तोड़ा जाता, बल्कि अगले दिन अष्टमी तिथि समाप्त होने के बाद पारण किया जाता है।

जीमूतवाहन की कथा और पूजा

जीवित्पुत्रिका व्रत में जीमूतवाहन की पूजा और कथा का विशेष महत्व है। मान्यताओं के अनुसार, जीमूतवाहन एक राजकुमार थे जिन्होंने नाग जाति की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी। उन्होंने नागों को गरुड़ से बचाने के लिए स्वयं का बलिदान दे दिया था। इसी त्याग भावना के कारण उन्हें देवता के रूप में पूजा जाता है।

व्रत के दिन, महिलाएँ जीमूतवाहन की मूर्ति बनाती हैं या उन्हें चित्र के रूप में स्थापित करती हैं। पूजा के दौरान उन्हें लाल वस्त्र, फूल, फल, दीपक, चावल, रोली (सिंदूर) आदि अर्पित किए जाते हैं। इसके साथ ही चील और सियार की कहानियाँ सुनना भी आवश्यक है। इन दोनों प्राणियों की कहानियाँ त्याग, स्नेह और स्त्री शक्ति के प्रतीक से जुड़ी हैं।

जितिया व्रत से जुड़ी सामाजिक भावनाएँ

यह व्रत न केवल धार्मिक आस्था, बल्कि सामाजिक भावना को भी दर्शाता है। यह दर्शाता है कि एक माँ अपने बच्चे के लिए किसी भी हद तक जा सकती है। पूरे दिन बिना पानी पिए और सभी नियमों का शांतिपूर्वक पालन करते हुए उपवास करने के लिए न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक शक्ति की भी आवश्यकता होती है। यह त्याग, प्रेम और समर्पण की भावना को दर्शाता है।

इस दिन गाँवों का माहौल बिल्कुल अलग होता है। महिलाएँ सुबह से ही तैयारियों में जुट जाती हैं। सामूहिक पूजा की जाती है और घरों में कथा सुनने के लिए समूह बनाए जाते हैं। महिलाएँ गीत गाकर इस दिन को और भी खास बनाती हैं।

जीवित्पुत्रिका व्रत से जुड़ी कुछ खास बातें

यह व्रत केवल महिलाएं ही रखती हैं। इसे निर्जला उपवास के रूप में रखा जाता है। जीमूतवाहन की कथा और चील-सियार की पूजा अनिवार्य मानी जाती है। पूजा में सरसों का तेल चढ़ाया जाता है और बाद में बच्चों को आशीर्वाद दिया जाता है। नोनी साग, मरुआ रोटी और सतपुतिया की सब्जी का विशेष महत्व है। जितिया व्रत एक ऐसा पर्व है जिसमें माँ के स्नेह, विश्वास और शक्ति की झलक साफ़ दिखाई देती है। यह व्रत मातृत्व की गहराई और बच्चों के प्रति निस्वार्थ प्रेम का अद्भुत उदाहरण है।

 

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