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Janmashtami 2025: 15 या 16 अगस्त, कब है जन्माष्टमी? जानें सही तिथि और महत्व

जन्माष्टमी भगवान विष्णु के आठवें अवतार, भगवान कृष्ण के दिव्य जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।
12:10 PM Jul 31, 2025 IST | Preeti Mishra
जन्माष्टमी भगवान विष्णु के आठवें अवतार, भगवान कृष्ण के दिव्य जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।
Janmashtami 2025

Janmashtami 2025: जन्माष्टमी भगवान विष्णु के आठवें अवतार, भगवान कृष्ण के दिव्य जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। यह पावन पर्व भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को पड़ता है। इस दिन (Janmashtami 2025) लोग व्रत रखते हैं, मध्यरात्रि में पूजा करते हैं और लड्डू गोपाल के स्वागत के लिए मंदिरों और घरों को झूलों, दीपों और फूलों से सजाते हैं।

जन्माष्टमी के दिन भजन, आरती और कृष्ण लीलाओं के मंचन से समूचा वातावरण भक्तिमय हो जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान कृष्ण की पूजा करने से शांति, समृद्धि और मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। भगवान कृष्ण के जन्म के समय मध्यरात्रि (Janmashtami 2025) में विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं।

कब है इस वर्ष जन्माष्टमी?

जन्माष्टमी की तिथि को लेकर भ्रम की स्थिति है। अधिकांशतः, कृष्ण जन्माष्टमी दो लगातार दिनों में मनाई जाती है। पहली तिथि स्मार्त संप्रदाय के लिए और दूसरी वैष्णव संप्रदाय के लिए होती है। वैष्णव संप्रदाय की तिथि बाद वाली तिथि होती है।

द्रिक पंचांग के अनुसार, इस वर्ष भगवान कृष्ण की 5252वीं जयंती मनाई जाएगी। स्मार्त संप्रदाय जन्माष्टमी 15 अगस्त, दिन शुक्रवार को मनाएगा। इस दिन निशिता पूजा समय रात 11:49 बजे से 16 अगस्त की रात 12:33 बजे तक रहेगा। वहीं दही हांड़ी का खेल शनिवार, 16 अगस्त को खेला जाएगा। जो लोग जन्माष्टमी के दिन व्रत रखेंगे उनके लिए पारण का समय 16 अगस्त को रात्रि 09:34 बजे के बाद का होगा।

वैष्णव लोग जन्माष्टमी शनिवार, 16 अगस्त को मनाएंगे। इस दिन निशिता पूजा समय 16 अगस्त की रात 11:49 बजे से 17 अगस्त की रात 12:32 बजे तक रहेगा। इस दिन इस्कॉन के अनुसार पारण समय 17 अगस्त की सुबह 05:39 बजे के बाद होगा।

कृष्ण जन्माष्टमी पर व्रत के नियम

जन्माष्टमी के व्रत के दौरान अगले दिन सूर्योदय के बाद व्रत तोड़ने तक कोई भी अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए। एकादशी व्रत के सभी नियमों का पालन जन्माष्टमी व्रत के दौरान भी करना चाहिए।

व्रत का पारण, अर्थात व्रत का समापन, उचित समय पर करना चाहिए। कृष्ण जन्माष्टमी व्रत के लिए, पारण अगले दिन सूर्योदय के बाद अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र के समाप्त होने पर किया जाता है। यदि अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र सूर्यास्त से पहले समाप्त नहीं होते हैं, तो व्रत दिन के समय अष्टमी तिथि या रोहिणी नक्षत्र के समाप्त होने पर तोड़ा जा सकता है। यदि सूर्यास्त से पहले या यहाँ तक कि हिंदू मध्यरात्रि (जिसे निशिता काल भी कहा जाता है) से पहले अष्टमी तिथि या रोहिणी नक्षत्र समाप्त न हो, तो व्रत तोड़ने से पहले उनके समाप्त होने का इंतज़ार करना चाहिए।

अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र के समापन समय के आधार पर, कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत पूरे दो दिनों तक चल सकता है। जो भक्त दो दिन का उपवास नहीं कर पाते, वे अगले दिन सूर्योदय के बाद उपवास तोड़ सकते हैं। हिंदू धार्मिक ग्रंथ धर्मसिंधु में ऐसा सुझाव दिया गया है।

जन्माष्टमी पूजा विधि

- सुबह जल्दी उठें, स्नान करें और साफ़ कपड़े पहनें।
- पूजा कक्ष की सफ़ाई करें और वेदी को फूलों, दीयों और तोरण से सजाएँ।
- लड्डू गोपाल (बाल गोपाल) की मूर्ति को पंचामृत (दूध, दही, शहद, घी और चीनी) से स्नान कराएँ।
- स्नान कराने के बाद, मूर्ति को नए वस्त्र और आभूषण पहनाएँ। उन्हें एक सुसज्जित पालने में विराजमान करें।
- माखन, मिश्री, पंजीरी, खीर, फल और मिठाई जैसी भोग सामग्री तैयार करें।
- तुलसी के पत्ते चढ़ाएँ क्योंकि भगवान कृष्ण को तुलसी बहुत पसंद है।
- भक्त दिन भर उपवास रखते हैं और भगवान के सामने भक्तिपूर्वक पूजा करने का संकल्प लेते हैं।
- केवल फल, दूध और सात्विक भोजन ही ग्रहण किया जाता है।
- दिन भर "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" या "हरे कृष्ण महामंत्र" का जाप करें।
- भगवद्गीता पढ़ें या कृष्ण लीला कथा का पाठ करें।
- भगवान कृष्ण का जन्म ठीक मध्यरात्रि में मनाया जाता है।
- जन्म के समय घंटियाँ, शंख बजाएँ और भजन गाएँ।
- आरती करें और भगवान कृष्ण को पालने में झुलाएँ।
- मध्यरात्रि की पूजा के बाद, प्रसाद बाँटें और व्रत खोलें।

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