Indira Ekadashi 2025: इस दिन है इंदिरा एकादशी, जानिए पारण का समय
Indira Ekadashi 2025: सनातन धर्म में एकादशी को अत्यंत पुण्यदायी माना गया है। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार, इस दिन व्रत, स्नान, दान और संयम का विशेष महत्व है। यह पावन दिन (Indira Ekadashi 2025) भगवान विष्णु की पूजा और भक्ति के लिए सर्वोत्तम माना जाता है।
प्रत्येक एकादशी का अपना अलग महत्व और लाभ होता है। इन्हीं में से एक महत्वपूर्ण एकादशी है 'इंदिरा एकादशी', जो पितृ पक्ष में आती है। ऐसा माना जाता है कि यह एकादशी (Indira Ekadashi 2025) पितरों की आत्मा को शांति और मोक्ष प्रदान करती है।
इंदिरा एकादशी तिथि और पारण का समय
द्रिक पंचांग के अनुसार, इस महीने एकादशी एकादशी तिथि की शुरुआत 16 सितम्बर को दोपहर 03:51 बजे होगा। वहीं इसका समापन 17 सितम्बर को दोपहर 03:09 बजे होगा। इसलिए उदया तिथि के अनुसार इन्दिरा एकादशी बुधवार, 17 सितम्बर को मनाई जाएगी। इंदिरा एकादशी के बाद पारण 18 सितंबर को सुबह 06:57 से सुबह 09:20 के बीच किया जाएगा।
इंदिरा एकादशी का महत्व
इंदिरा एकादशी का पर्व पूर्णतः भगवान विष्णु को समर्पित है। इस दिन जगत के पालनहार भगवान विष्णु के साथ-साथ धन की देवी माँ लक्ष्मी की भी पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को करने और गरीबों, बेसहारा और ज़रूरतमंदों को दान देने से जन्मों-जन्मों के सभी पाप धुल जाते हैं। यह एकादशी पितृ पक्ष के दौरान मनाई जाती है; इसलिए, भक्त को पितरों का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त, इस दिन पूजा करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
इस दिन का महत्व केवल पितृ ऋण से मुक्ति तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह व्रत व्यक्ति को धर्म, कर्तव्य और परोपकार के मार्ग पर चलने की प्रेरणा भी देता है। इस एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति के जीवन में धार्मिक और आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार होता है।
इंदिरा एकादशी पर दान का महत्व
एकादशी केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक ही सीमित नहीं है। अनुष्ठानों के अलावा, इस दिन दान का भी बहुत महत्व है। सनातन धर्म में सदियों से दान को पुण्य का कार्य माना गया है। शास्त्रों के अनुसार, दान करने से व्यक्ति के बुरे कर्मों का नाश होता है और अच्छे कर्मों का फल मिलता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, दान करने से धर्म का पालन सुनिश्चित होता है और जीवन की कई समस्याओं से मुक्ति भी मिलती है। दान को दीर्घायु और स्वास्थ्य के लिए भी एक अचूक उपाय माना जाता है।
हम जिस समाज में रहते हैं, उसके अस्तित्व और प्रगति के लिए सहयोग आवश्यक है। दान करते समय अहंकार, पुण्य कमाने या उपकार करने की भावना नहीं होनी चाहिए। बल्कि, दान स्वीकार करने वाले के प्रति कृतज्ञता का भाव रखना चाहिए, क्योंकि वे आपके भीतर सद्भावना जागृत करते हैं और अपनी स्वीकृति के माध्यम से आपको योग्य बनाते हैं। आपको देने के योग्य बनाने के लिए ईश्वर के प्रति भी कृतज्ञता होनी चाहिए।
सनातन धर्म के कई ग्रंथों और पुराणों में दान के महत्व का उल्लेख है। दान के महत्व पर प्रकाश डालते हुए मनुस्मृति कहती है:
तपः परमं कृतयुगे त्रेतायं ज्ञानमुच्यते।
द्वापरे यज्ञमेवहु रदानामकं कलौ युगे॥
इसका अर्थ है: सतयुग में तप, त्रेता में ज्ञान, द्वापर में यज्ञ और कलियुग में दान को मानव कल्याण का साधन माना गया है।
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