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Hartalika Teej 2025: कब है हरतालिका तीज? जानें क्यों पड़ा इस पर्व का यह नाम

हरतालिका तीज की उत्पत्ति व इसके नाम का महत्त्व एक पौराणिक कथा में मिलता है।
02:07 PM Jun 26, 2025 IST | Preeti Mishra
हरतालिका तीज की उत्पत्ति व इसके नाम का महत्त्व एक पौराणिक कथा में मिलता है।

Hartalika Teej 2025: तीज का त्यौहार मुख्यतः उत्तर भारतीय महिलाओं द्वारा धूमधाम से मनाया जाता है। तीज मुख्यतः राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखण्ड में मनाई जाती है। सावन और भाद्रपद के मास में आने वाली तीन प्रमुख तीज निम्न हैं: हरियाली तीज, कजरी तीज और हरतालिका तीज। हरतालिका तीज (Hartalika Teej 2025) व्रत भाद्रपद महीने की शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाया जाता है।

कब है इस वर्ष हरतालिका तीज?

हरतालिका तीज (Hartalika Teej 2025) भादो महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है। द्रिक पंचांग के अनुसार, भादो महीने की तृतीया तिथि का प्रारम्भ 25 अगस्त को दोपहर 12:34 बजे होगा। वहीं इसका समापन 26 अगस्त को दोपहर 01:54 बजे होगा। हरतालिका पूजा के लिए सुबह का समय उचित माना गया है। इसलिए हरितालिका तीज मंगलवार, 26 अगस्त को मनाया जाएगा। इस दिन प्रातःकाल पूजा मुहूर्त सुबह 06:22 से 08:53 बजे तक है।

कैसे पड़ा हरतालिका नाम?

हरतालिका तीज की उत्पत्ति व इसके नाम का महत्त्व एक पौराणिक कथा में मिलता है। हरतालिका तीज का नाम संस्कृत के दो शब्दों से लिया गया है: "हरत" (जिसका अर्थ है अपहरण) और "आलिका" (जिसका अर्थ है महिला मित्र)। पौराणिक कथा के अनुसार, देवी पार्वती की सहेली ने उनका अपहरण कर लिया और उन्हें जंगल में ले गई ताकि वह अपने पिता द्वारा तय किए गए विवाह से बच सकें।

जंगल में पार्वती ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की, जिन्होंने अंततः उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया। इस भक्ति और दिव्य मिलन का जश्न मनाने के लिए, विवाहित और अविवाहित महिलाएँ वैवाहिक सुख और अच्छे पति के लिए उपवास और पूजा के साथ हरतालिका तीज मनाती हैं। यह त्यौहार भगवान शिव के प्रति प्रेम, मित्रता और अटूट भक्ति का जश्न मनाता है।

कैसे मनाया जाता है हरतालिका तीज का पर्व?

हरतालिका तीज को विवाहित और अविवाहित महिलाएं विशेष रूप से उत्तर भारत में बड़ी श्रद्धा के साथ मनाती हैं। महिलाएं सुबह जल्दी उठती हैं, पवित्र स्नान करती हैं और वैवाहिक सुख और अपने पति की लंबी उम्र की कामना के लिए लगभग 36 घंटे का सख्त निर्जला व्रत रखती हैं। इस दिन महिलाएं भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा करती हैं, मूर्तियों को फूलों से सजाती हैं और फल, मिठाई और पवित्र वस्तुएं चढ़ाती हैं।

पारंपरिक गीत और नृत्य किए जाते हैं और महिलाएं मेहंदी, नए कपड़े और गहनों से खुद को सजाती हैं। कुछ क्षेत्रों में जुलूस और सामूहिक पूजा का आयोजन किया जाता है। रात भर की पूजा समाप्त होने के बाद ही व्रत तोड़ा जाता है।

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