Eid-e-Milad-un-Nabi 2025: कल है ईद-ए-मिलाद-उन-नबी, जानें क्यों मनाते हैं यह त्योहार
Eid-e-Milad-un-Nabi 2025: मुस्लिमों का त्योहार ईद-ए-मिलाद-उन-नबी कल, शुक्रवार, 5 सितंबर को मनाया जाएगा। यह त्योहार पैगंबर हज़रत मुहम्मद साहब के जन्मदिन (Prophet Muhammad Birthday) के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इस त्योहार को ईद मिलादुन्नबी (Eid-e-Milad-un-Nabi 2025) भी कहा जाता है। इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार, यह दिन रबी-उल-अव्वल महीने की 12वीं तारीख को आता है।
कल मनाई जाएगी ईद-ए-मिलाद-उन-नबी
इस साल रबी-उल-अव्वल का चांद बीते 24 अगस्त को नजर आया था। इसके अनुसार, इस्लामी कैलेंडर की गिनती शुरू होने के बाद ईद-ए-मिलाद-उन-नबी शुक्रवार, 5 सितंबर 2025 को मनाई जाएगी। ईद-ए-मिलाद-उन-नबी (Eid-e-Milad-un-Nabi 2025) को ईदों की ईद कहा जाता है। यह दिन मुसलमानों के लिए सबसे बड़ा अवसर माना जाता है।
मुसलमान ईद-ए-मिलाद-उन-नबी क्यों मनाते हैं?
ईद-ए-मिलाद-उन-नबी, जिसे मौलिद (Eid-e-Milad 2025( भी कहा जाता है, इस्लाम के संस्थापक पैगंबर मुहम्मद के जन्मदिवस के उपलक्ष्य में मुसलमान मनाते हैं। यह इस्लामी कैलेंडर के तीसरे महीने, रबी-उल-अव्वल के 12वें दिन पड़ता है। इस दिन का धार्मिक महत्व बहुत अधिक है क्योंकि पैगंबर मुहम्मद को अल्लाह का दूत माना जाता है जिन्होंने कुरान के माध्यम से शांति, करुणा और आस्था का संदेश दिया।
मुसलमान इस अवसर पर प्रार्थना, पैगंबर की शिक्षाओं का पाठ, जुलूस और दान-पुण्य करते हैं। यह उनके जीवन, उनके मार्गदर्शन को याद करने और उनके धर्म और मानवता के मार्ग पर चलने का समय है।
ईद-ए-मिलाद का इतिहास और महत्व
ईद-ए-मिलाद (Eid-e-Milad 2025) उन मूल्यों से फिर से जुड़ने का एक अवसर है जो पैगंबर के जीवन को परिभाषित करते हैं—ईमानदारी, विनम्रता, उदारता और न्याय। यह उत्सव प्रारंभिक इस्लामी काल से चला आ रहा है क्योंकि इस धर्म के कई अनुयायियों का मानना है कि पैगंबर का जन्म मक्का में 570 ईस्वी में रबी अल-अव्वल की 12 तारीख को हुआ था। ऐसा माना जाता है कि फ़ातिमी लोगों ने सबसे पहले इस अवसर को आधिकारिक रूप से मनाया था। पहला आधिकारिक उत्सव मिस्र में मनाया गया था, लेकिन 11वीं शताब्दी के दौरान यह जल्द ही व्यापक और अधिक लोकप्रिय हो गया।
ईद-ए-मिलाद कैसे मनाई जाती है?
उत्सव से एक दिन पहले, लोग अपने आस-पड़ोस, गलियों, मस्जिदों और बाज़ारों को रंग-बिरंगी रोशनियों और हरे झंडों से सजाना शुरू कर देते हैं। महिलाएँ सेवइयाँ और शीर खुरमा जैसे कई तरह के व्यंजन बनाती हैं। अल्लाह की इबादत और दुआएँ माँगने के लिए, कुछ लोग हाजी अली दरगाह, जामा मस्जिद, निज़ामुद्दीन औलिया और अजमेर शरीफ़ जैसे प्रसिद्ध स्थानों की यात्रा करते हैं।
इस दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व माना जाता है। जो लोग सच्चे दिल से अल्लाह के प्रति समर्पित होते हैं, वे ज़रूरतमंदों और गरीबों के लिए दान-पुण्य करते हैं। छोटे बच्चे अपने बड़ों से ईदी माँगते हैं। परिवार इस उत्सव के लिए एकत्रित होते हैं और अपने बच्चों को पैगंबर मोहम्मद और उनकी दयालुता व मानवता की शिक्षाओं के बारे में कहानियाँ सुनाते हैं।
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