Chinnamasta jayanti 2025: कल है छिन्नमस्ता जयन्ती, ऐसे करें देवी प्रचण्ड चण्डिका की पूजा
Chinnamasta jayanti 2025: वैशाख शुक्ल चतुर्दशी को देवी छिन्नमस्ता जयन्ती मनायी जाती है। इस वर्ष छिन्नमस्ता जयन्ती कल यानी रविवार, 11 मई को मनाई जाएगी। देवी छिन्नमस्ता (Chinnamasta jayanti 2025) दस महाविद्या देवियों में से छठवीं देवी हैं तथा वह काली कुल से सम्बन्धित हैं।
देवी छिन्नमस्ता (Chinnamasta jayanti 2025) कबन्ध शिव की शक्ति हैं। देवी छिन्नमस्ता, देवी प्रचण्ड चण्डिका के नाम से भी लोकप्रिय हैं। हिरणाकश्यप तथा विरोचन आदि भी देवी के उपासक थे, इसीलिये देवी को वज्र वैरोचनी के नाम से भी पूजा जाता है।
उग्र रूप होता है इस देवी का
देवी छिन्नमस्ता को अत्यन्त उग्र एवं भयंकर स्वरूप में दर्शाया जाता है। यही कारण है कि मुख्यतः तान्त्रिकों, योगियों तथा अघोरियों द्वारा ही यह साधना की जाती है। यद्यपि गृहस्थजन भी विभिन्न प्रकार के संकटों से अपनी रक्षा हेतु देवी छिन्नमस्ता की पूजा-अर्चना कर सकते हैं।
हिन्दु धर्म ग्रन्थों के अनुसार, पृथ्वी में निरन्तर वृद्धि तथा विनाश होता रहता है। जिस समय विनाश से वृद्धि की मात्रा अधिक होने लगती है, उसी समय देवी भुवनेश्वरी का प्राकट्य होता है तथा जिस समय विनाश अधिक एवं वृद्धि निम्न होती है, उस समय पर देवी छिन्नमस्ता का नियन्त्रण होता है।
भगवान परशुराम भी श्री छिन्नमस्ता विद्या की करते थे उपासना
छिन्नमस्ता तन्त्र शास्त्र के अनुसार, भगवान परशुराम भी श्री छिन्नमस्ता विद्या की उपासना करते थे। नाथपन्थी साधकों द्वारा भी देवी छिन्नमस्ता की आराधना की जाती है। स्वयं गुरु गोरखनाथ जी भी देवी छिन्नमस्ता जी के ही उपासक थे। देवी छिन्नमस्ता को भगवान विष्णु के श्री नृसिंह अवतार से सम्बन्धित माना जाता है। देवी छिन्नमस्ता की साधना का निर्देश मात्र योग्य साधकों हेतु ही दिया गया है।
देवी छिन्नमस्ता की आराधना करने से व्यक्ति जीवभाव से मुक्त हो शिवभाव को प्राप्त कर लेता है। अतः वह समस्त प्रकार के सांसारिक भाव बन्धनों से विरक्त होकर परमात्मा के परमानन्द की अनुभूति करता है। देवी छिन्नमस्ता अन्तर्मुखी साधना का सन्देश देती हैं। उनकी दोनों सखियाँ रज एवं तम का ही रूप हैं। देवी छिन्नमस्ता को शाक्त, बौद्ध तथा जैन समुदाय के अनुयायियों द्वारा पूजा जाता है।
देवी छिन्नमस्ता की ऐसे करें पूजा
देवी छिन्नमस्ता पूजा करने के लिए, स्नान करके स्थान और खुद को शुद्ध करके और धूप या दीप जलाकर पूजा शुरू करें। छिन्नमस्ता की छवि या मूर्ति को साफ वेदी पर रखें, हो सके तो लाल कपड़े पर। लाल फूल, अनार, लाल चंदन और सिंदूर चढ़ाएं। भक्ति के साथ उनके ध्यान मंत्र या छिन्नमस्ता कवच का जाप करें। मार्गदर्शन के तहत विशिष्ट तांत्रिक अभ्यासों का पालन किए बिना मांस और शराब से बचें। उनका ध्यान आत्म-बलिदान, परिवर्तन और मुक्ति का प्रतीक है। आरती और मिठाई या फल चढ़ाकर समापन करें। यह पूजा अमावस्या की रातों में सबसे अच्छी होती है, खासकर गुप्त नवरात्रि या चतुर्दशी के दौरान।
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