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इस दिन से होगी चातुर्मास की शुरुआत, जानें क्यों रुक जाते हैं सभी मांगलिक कार्य

चातुर्मास हिंदू कैलेंडर में चार महीने की पवित्र अवधि है, जो आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक मनाई जाती है।
12:35 PM May 30, 2025 IST | Preeti Mishra
चातुर्मास हिंदू कैलेंडर में चार महीने की पवित्र अवधि है, जो आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक मनाई जाती है।

Chaturmas 2025: चातुर्मास हिंदू कैलेंडर में चार महीने की पवित्र अवधि है, जो आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक मनाई जाती है। इसे आध्यात्मिक विकास, तपस्या और भक्ति का समय (Chaturmas 2025) माना जाता है।

चातुर्मास (Chaturmas 2025) विशेष रूप से संतों और तपस्वियों के लिए महत्वपूर्ण है, जो ध्यान और शिक्षा देने के लिए एक स्थान पर रहते हैं। चार महीनों में से प्रत्येक एक अलग देवता को समर्पित है, जो अनुशासन, भक्ति और आंतरिक शुद्धि के विभिन्न पहलुओं को बढ़ावा देता है। इसका समापन देव उठनी एकादशी के साथ होता है।

कब से कब तक है चातुर्मास 2025?

चातुर्मास की शुरुआत देवशयनी एकादशी से होती है। द्रिक पंचांग के अनुसार, इस साल देवशयनी एकादशी 6 जुलाई को मनाई जाएगी यानी चातुर्मास 6 जुलाई से शुरू होंगे। चातुर्मास की समाप्ति 1 नवंबर को होगी। इसके अगले दिन 2 नवंबर को तुलसी विवाह के साथ सभी मांगलिक कार्यों की शुरुआत फिर से हो जाएगी।

क्या होता है चातुर्मास में?

चातुर्मास चार महीने की अवधि है जो हिंदू धर्म में बहुत महत्व रखती है। इस दौरान, भगवान विष्णु क्षीर सागर में योग निद्रा में लीन हो जाते हैं। इसलिए इन चार महीनों में कई शुभ और मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन आदि नहीं किए जाते हैं। इन चार महीनों की पवित्र अवधि के दौरान, लोग प्रार्थना, उपवास, ध्यान और दान सहित आध्यात्मिक अभ्यासों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। यह आत्म-अनुशासन और धार्मिक अनुष्ठान का समय है, जिसमें नकारात्मक कार्यों और भोग-विलास से बचना होता है।

इस दौरान धार्मिक प्रवचन, भजन और शास्त्र पढ़ना आम बात है। साधु-संत शिक्षा देने और ध्यान करने के लिए इन चार महीने एक ही स्थान पर रहते हैं। इस दौरान जन्माष्टमी, गणेश चतुर्थी, नवरात्रि और दिवाली जैसे प्रमुख त्योहार आते हैं, जो इसे आध्यात्मिक रूप से महत्वपूर्ण बनाते हैं। चातुर्मास, देवउठनी एकादशी के साथ समाप्त होता है।

चातुर्मास में क्यों नहीं होता है कोई मांगलिक कार्य?

चातुर्मास में मांगलिक कार्यों पर रोक के पीछे धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से कई कारण माने जाते हैं। मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं:

देवताओं का शयन काल: चातुर्मास की शुरुआत देवशयनी एकादशी से होती है, जब माना जाता है कि भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं। इस दौरान मांगलिक कार्य (जैसे विवाह, गृह प्रवेश) वर्जित माने जाते हैं क्योंकि देवताओं की उपस्थिति और आशीर्वाद आवश्यक होता है।

आध्यात्मिक साधना का समय: चातुर्मास को आत्मशुद्धि, व्रत, तप, और भक्ति के लिए उपयुक्त माना गया है। यह समय भौतिक और सांसारिक गतिविधियों से हटकर आत्मचिंतन का होता है।

प्राकृतिक असंतुलन और स्वास्थ्य कारण: यह समय वर्षा ऋतु का होता है, जब वातावरण में संक्रमण और बीमारियों का खतरा अधिक रहता है। इसलिए यात्राएं और बड़े सामाजिक आयोजन टाले जाते हैं।

धार्मिक अनुशासन और परंपरा: सनातन धर्म की परंपराओं में चातुर्मास को संयम और नियमों के पालन का काल माना गया है। मांगलिक कार्यों की रोक इसी धार्मिक अनुशासन का हिस्सा है।

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