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Bhisma Dwadashi 2024: कल मनाई जाएगी भीष्म द्वादशी, जानिए इस दिन का महाभारत से क्या है गहरा नाता

राजस्थान (डिजिटल डेस्क)। Bhisma Dwadashi 2024: सनातन धर्म में माघ माह की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि (Bhisma Dwadashi 2024) को भीष्म द्वादशी का पर्व मनाया जाता है। भीष्म द्वादशी को तिल द्वादशी और गोविंद द्वादशी के नाम से भी...
01:06 PM Feb 19, 2024 IST | Juhi Jha
राजस्थान (डिजिटल डेस्क)। Bhisma Dwadashi 2024: सनातन धर्म में माघ माह की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि (Bhisma Dwadashi 2024) को भीष्म द्वादशी का पर्व मनाया जाता है। भीष्म द्वादशी को तिल द्वादशी और गोविंद द्वादशी के नाम से भी...
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राजस्थान (डिजिटल डेस्क)। Bhisma Dwadashi 2024: सनातन धर्म में माघ माह की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि (Bhisma Dwadashi 2024) को भीष्म द्वादशी का पर्व मनाया जाता है। भीष्म द्वादशी को तिल द्वादशी और गोविंद द्वादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान ​कृष्ण की विधिवत रूप से पूजा की जाती है। यह पर्व भीष्म अष्टमी के ठीक चार दिन बाद आता है। इस दिन का इतिहास महाराभारत काल से जुड़ा हुआ है। आइए जानते है आखिर क्या है इस दिन का महत्व और क्यों मनाया जाता है भीष्म द्वादशी का पर्व ?

कल मनाई जाएगी भीष्म द्वादशी

 

 

हर साल माघ माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि के दिन भीष्म द्वादशी का पर्व मनाया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार इस साल यह पर्व कल यानी 20 फरवरी 2024, मंगलवार के दिन मनाई जा रही है। इस दिन एकादशी तिथि सुबह 09 बजकर 55 मिनट पर समाप्त हो जाएगी और उसके बाद से द्वादशी तिथि का प्रांरभ हो जाएगा। जो पूरे दिन रहेगा। जानकारी के लिए बता दें कि कई जगहों पर भीष्म द्वादशी फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी के भी मनाया जाता है।

इस दिन का महाभारत से कैसे है गहरा नाता

महाभारत के बारे में हम सभी जानते है। महाभारत में कौरवों और पांडवों के बीच में भीषण युद्ध हुआ था। इसी युद्ध में भीष्म पितामह भी थे। वह कौरवों की ओर से लड़ रहे थे। ऐसे में पांडवों को समझ में आ गया था कि वह कौरवों को आसानी से नहीं हरा पाएंगे। युद्ध के दौरान उनके लिए जाल ​बिछाया गया उन्हें कई बाण लगे और वह बाण के शैय्या पर गिर पड़े। भीष्म पितामह को इच्छामृत्यु का वरदान प्राप्त था।

 

बाण के शैय्या के लेटे वह सूर्य के उत्तरायण का इंतजार कर रहे थे। क्योंकि भगवान कृष्ण ने गीता में कहा था कि जो प्राणी सूर्य के उत्तरायण के दौरान त्यागते है उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। ऐसे में भीष्म पितामह ने भी वहीं दिन चुना। माना जाता है कि जिस समय भीष्म पितामह ने अपने प्राण त्यागे उस समय माघ माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि थी। देह त्यागने के चौथे दिन यानी द्वादशी पर उनका अंतिम संस्कार किया गया। इसी वजह से भीष्म अष्टमी के बाद भीष्म द्वादशी मनाई जाती है।

भीष्म द्वादशी व्रत का महत्व

हिंदू धर्म में भीष्म द्वादशी का व्रत महत्वपूर्ण माना गया है। शास्त्रों के अनुसार यह व्रत शुभ और पुण्यफल देने वाला माना गया है। इस व्रत को करने से जातक को पापों से मुक्ति मिलती है और साथ ही आरोग्य की प्राप्ति होती है। व्रत को लेकर यह भी मान्यता है कि इस व्रत को करने से उत्तम संतान,जीवन में सौभाग्य,सफलता और समृद्धि की प्राप्ति होती है। इस दिन तिल दान करना, तिल के पानी से स्नान करना और तिल को हवन पूजा में इस्तेमाल करना बेहद शुभ माना जाता है।

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