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Bhaiya Dooj 2025: कब है भैया दूज? जानें तिलक लगाने का शुभ मुहूर्त

दिवाली की धूम के बाद, भाई-बहन के बीच प्रेम और सुरक्षा के एक खूबसूरत प्रतीक के रूप में भैया दूज का त्योहार आता है।
05:43 PM Oct 11, 2025 IST | Preeti Mishra
दिवाली की धूम के बाद, भाई-बहन के बीच प्रेम और सुरक्षा के एक खूबसूरत प्रतीक के रूप में भैया दूज का त्योहार आता है।

Bhaiya Dooj 2025: दिवाली की धूम के बाद, भाई-बहन के बीच प्रेम और सुरक्षा के एक खूबसूरत प्रतीक के रूप में भैया दूज का त्योहार आता है। रक्षाबंधन की तरह, यह त्योहार भी भाई-बहन के अटूट स्नेह का प्रतीक है - लेकिन इसकी अपनी अनूठी परंपराएँ और मान्यताएँ हैं। इस वर्ष भैया दूज दिवाली के दो दिन बाद 23 अक्टूबर गुरुवार को मनाया जाएगा।

इस दिन भाई को तिलक लगाने का सबसे उत्तम मुहूर्त दोपहर 01 बजकर 13 मिनट मिंट से लेकर 03 बजकर 28 मिनट तक रहेगा। इस तरह भाई दूज पर तिलक लगाने के लिए बहनों को 02 घंटे 15 मिनट का शुभ मुहूर्त मिलेगा। इस दिन को यम द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है, जो दिव्य भाई-बहन यमराज (मृत्यु के देवता) और उनकी बहन यमी (यमुना) से जुड़ी है।

इस शुभ दिन पर, बहनें अपने भाइयों के माथे पर तिलक लगाती हैं, आरती उतारती हैं और उनकी लंबी उम्र की कामना करती हैं, जबकि भाई अपनी बहनों की हर विपत्ति से रक्षा करने का संकल्प लेते हैं।

भैया दूज 2025 तिथि और मुहूर्त

हिंदू पंचांग के अनुसार, भैया दूज कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाई जाएगी, जो गुरुवार 23 अक्टूबर को पड़ रही है।

भाई दूज 2025 तिथि: 23 अक्टूबर (गुरुवार )
तिलक लगाने का शुभ समय : दोपहर 01 बजकर 13 मिनट मिंट से लेकर 03 बजकर 28 मिनट तक

भैया दूज (यम द्वितीया) की कथा

भैया दूज की कथा प्राचीन हिंदू पौराणिक कथाओं में गहराई से निहित है। पौराणिक कथा के अनुसार, जब यमराज लंबे समय के बाद अपनी बहन यमुना से मिलने आए, तो यमुना ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया, उनकी आरती उतारी और उनकी कुशलता के लिए उनके माथे पर पवित्र तिलक लगाया। उनके स्नेह से अभिभूत होकर, यमराज ने उन्हें वरदान दिया कि जो भी भाई इस दिन अपनी बहन से मिलने जाएगा और तिलक लगाएगा, उसे दीर्घायु, समृद्धि और अकाल मृत्यु से सुरक्षा मिलेगी। तब से, इस दिन को यम द्वितीया के रूप में मनाया जाता है, जो भाई-बहन के बीच के बंधन और प्रेम, सम्मान और पारिवारिक संबंधों के महत्व का प्रतीक है।

अनुष्ठान और उत्सव

भाई दूज के दिन, भाई और बहन दोनों सुबह जल्दी उठते हैं, स्नान करते हैं और साफ़ या नए कपड़े पहनते हैं। दिवाली के बाद के उत्सव के माहौल को बनाए रखने के लिए घरों को रंगोली और दीयों से सजाया जाता है। बहन अपने भाई के माथे पर सिंदूर (रोली) और चावल (अक्षत) का तिलक लगाती है, आरती करती है और यमराज और यमुना से उसकी सलामती की प्रार्थना करती है। यह कार्य सुरक्षा, प्रेम और आशीर्वाद का प्रतीक है।

तिलक समारोह के बाद, बहन अपने भाई को मिठाई और एक विशेष भोजन खिलाती है, जो उसके स्नेह का प्रतीक है। खीर, लड्डू और बर्फी जैसी पारंपरिक मिठाइयाँ आमतौर पर बनाई जाती हैं। बदले में भाई अपनी बहन को कृतज्ञता और प्रेम के प्रतीक के रूप में उपहार या पैसे देता है। इससे उनका भावनात्मक बंधन मज़बूत होता है और दोनों को खुशी मिलती है।

यम-द्वितीया परंपरा

कुछ भक्त अकाल मृत्यु और दुर्भाग्य से सुरक्षा की कामना करते हुए यमराज और यमुना नदी की प्रतीकात्मक पूजा भी करते हैं। इस मुहूर्त के दौरान, बहनों के लिए भाई दूज का तिलक करना, अपने भाई की दीर्घायु की कामना करना और मिठाई व उपहार भेंट करना अत्यंत शुभ माना जाता है।

भैया दूज का महत्व

भैया दूज भाई-बहन के पवित्र प्रेम का प्रतीक है। ऐसा माना जाता है कि इस अनुष्ठान को करने से भाई की लंबी आयु, अच्छा स्वास्थ्य और समृद्धि सुनिश्चित होती है। आध्यात्मिक रूप से, यह हमें पारिवारिक बंधनों को संजोने, रिश्तों को मज़बूत करने और कृतज्ञता व्यक्त करने की याद दिलाता है।

यह त्यौहार नैतिक मूल्यों को भी पुष्ट करता है - भाई अपनी बहनों की रक्षा का संकल्प लेते हैं और बहनें उनकी सुरक्षा और सफलता के लिए प्रार्थना करती हैं। तिलक की रस्म भाई-बहनों के बीच ईश्वरीय सुरक्षा और आपसी सम्मान का प्रतीक है।

भारत भर में भैया दूज कैसे मनाई जाती है?

महाराष्ट्र और गोवा में इसे भाऊ बीज के नाम से जाना जाता है।
पश्चिम बंगाल में इसे भाई फोंटा के रूप में मनाया जाता है, जहाँ बहनें तिलक समारोह तक उपवास रखती हैं।
नेपाल में इसे भाई टीका कहा जाता है, जो तिहार त्योहार का एक हिस्सा है, और इसमें सात रंगों का एक विस्तृत तिलक लगाया जाता है।
क्षेत्रीय भिन्नताओं के बावजूद, भावना एक ही है - भाई-बहन के बीच प्रेम का उत्सव।

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