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Akhuratha Sankashti Chaturthi 2025: कब है अखुरथ संकष्टी चतुर्थी, क्यों मनाया जाता है यह पर्व? जानें सबकुछ

अखुरथ संकष्टी के दिन भगवान गणेश के अखुरथा रूप की पूजा-अर्चना की जाती है।
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Akhuratha Sankashti Chaturthi 2025: दिसंबर 2025 की अखुरथ संकष्टी चतुर्थी भगवान गणेश के भक्तों के लिए बहुत आध्यात्मिक महत्व रखती है। पौष माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को किया जाने वाला यह व्रत मुश्किलों से राहत, तरक्की के लिए आशीर्वाद और बुरे असर से बचाने के लिए जाना जाता है। हिंदू परंपराओं में इस दिन भगवान गणेश के अखुरथ रूप की पूजा (Akhuratha Sankashti Chaturthi 2025) करना बहुत शुभ माना जाता है।

कब है अखुरथ संकष्टी चतुर्थी?

अखुरथ संकष्टी चतुर्थी पौष माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। इस वर्ष पौष माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि की शुरुआत चतुर्थी दिसम्बर 07, 2025 को शाम 06:24 बजे होगी और इसका समापन दिसम्बर 08, 2025 को शाम 04:03 बजे होगा। ऐसे में यह पर्व रविवार, दिसम्बर 7, 2025 को मनाया जाएगा। इस दिन चन्द्रोदय का समय शाम 07:44 बजे होगा।

Akhuratha Sankashti Chaturthi 2025: कब है अखुरथ संकष्टी चतुर्थी, क्यों मनाया जाता है यह पर्व? जानें सबकुछ

क्यों मनाया जाता है यह पर्व?

अखुरथ संकष्टी के दिन भगवान गणेश के अखुरथा रूप की पूजा-अर्चना की जाती है। अखु का अर्थ है मूषक तथा रथा का अर्थ है रथ वाला अर्थात् अखुरथा गणेश का अर्थ है मूषक के रथ वाले भगवान गणेश। भगवान गणेश का यह स्वरूप अत्यन्त अत्यन्त शुभ एवं मंगलकारी माना जाता है।

प्राचीन काल में वानरराज बालि द्वारा बन्धक बना लिये जाने की उपरान्त लङ्कापति रावण ने अपने नाना पुलस्त्य मुनि के कहने पर यह श्रेष्ठ व्रत किया था। इस व्रत के फलस्वरूप रावण बन्धन मुक्त हुआ था। द्वापरयुग में भगवान श्रीकृष्ण के कहने पर धर्मराज युधिष्ठिर ने भी यह व्रत किया जिसके प्रभाव से उन्हें उनके राज्य की पुनः प्राप्ति हुयी थी।

अखुरथ संकष्टी का महत्व

माना जाता है कि अखुरथ संकष्टी मुश्किलों को दूर करती है, किस्मत लाती है, और भक्तों को स्पष्टता और ताकत का आशीर्वाद देती है। इस मार्गशीर्ष चतुर्थी पर अखुरथ गणेश की पूजा करने से शांति, तरक्की और भगवान की सुरक्षा मिलती है।

Akhuratha Sankashti Chaturthi 2025: कब है अखुरथ संकष्टी चतुर्थी, क्यों मनाया जाता है यह पर्व? जानें सबकुछ

द्वापर युग में इस व्रत से युधिष्ठिर को मिली थी राहत

द्वापर युग में, जब धर्मराज युधिष्ठिर को अपना राज्य खोना पड़ा, तो भगवान कृष्ण ने उन्हें यह व्रत करने की सलाह दी। इसके आशीर्वाद से, युधिष्ठिर को अपना राज्य और स्थिरता वापस मिल गई। ये कहानियाँ मुश्किलों को दूर करने और मुश्किल समय में भगवान का साथ देने की व्रत की शक्ति को दिखाती हैं।

अखुरथ संकष्टी पूजा अनुष्ठान

- भक्त नहाकर, पूजा की जगह को साफ़ करके और अखुरथ गणेश की मूर्ति या तस्वीर रखकर व्रत शुरू करते हैं।
- ताज़े फूल, दूर्वा घास, धूप, और मोदक या फल जैसे नैवेद्य चढ़ाए जाते हैं। भक्त गणेश मंत्रों का जाप करते हैं और अखुरथ संकष्टी व्रत कथा पढ़ते हैं।
- व्रत चांद निकलने के बाद ही तोड़ा जाता है। शाम 7:55 बजे चांद दिखने के बाद, भक्त चंद्र दर्शन करते हैं, चांद को अर्घ्य देते हैं, और व्रत पूरा करते हैं।

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