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क्या है अमेरिका वाली वो हाईटेक 'समुद्री आंख', जो अब भारत के पास भी होगी? हिंद महासागर से लेकर अरब सागर तक नहीं बच पाएगा कोई मूवमेंट!

पहलगाम हमले के बाद अमेरिका भारत को देगा 131 मिलियन डॉलर की समुद्री निगरानी प्रणाली, हिंद महासागर में सटीक निगरानी होगी संभव।
04:13 PM May 02, 2025 IST | Rohit Agrawal

अमेरिका ने भारत को 131 मिलियन डॉलर की अत्याधुनिक समुद्री निगरानी तकनीक देने की घोषणा की है जो भारत की नौसैनिक क्षमताओं में क्रांतिकारी बदलाव लाएगी। यह सौदा पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत की बढ़ती सुरक्षा चुनौतियों के मद्देनजर किया गया है, जिससे भारत हिंद महासागर और अरब सागर में हर समुद्री गतिविधि पर पैनी नजर रख पाएगा। अमेरिकी रक्षा सुरक्षा सहयोग एजेंसी द्वारा अनुमोदित इस डील में सीविज़न सॉफ्टवेयर, उन्नत विश्लेषणात्मक उपकरण और प्रशिक्षण शामिल हैं जो भारत को समुद्री डोमेन जागरूकता में अगली पीढ़ी की क्षमता प्रदान करेंगे।

क्या है यह अत्याधुनिक तकनीक जिससे लैस होगा भारत?

अमेरिका की यह समुद्री निगरानी प्रणाली दुनिया की सबसे उन्नत प्रणालियों में से एक है जो कृत्रिम बुद्धिमत्ता और मशीन लर्निंग पर आधारित है। सीविज़न सॉफ्टवेयर समुद्र में चल रही हर गतिविधि को वास्तविक समय में ट्रैक कर सकता है - चाहे वह व्यावसायिक जहाज हो, संदिग्ध नाव हो या फिर पनडुब्बी। यह प्रणाली उपग्रह डेटा, तटीय रडार, सोनार सिस्टम और ड्रोन से प्राप्त जानकारी को एकीकृत करके एक व्यापक समुद्री चित्र प्रस्तुत करती है। विशेषज्ञों के अनुसार, यह तकनीक भारत को अपनी 7,500 किलोमीटर लंबी तटरेखा और विशाल अनन्य आर्थिक क्षेत्र की निगरानी में अभूतपूर्व क्षमता प्रदान करेगी।

 

अमेरिकी समुद्री निगरानी तकनीक की क्या है खासियत?

रडार सिस्टम: तटीय और समुद्री रडार जहाजों और संदिग्ध गतिविधियों की निगरानी करते हैं।

सोनार सिस्टम: पनडुब्बियों और पानी के नीचे की गतिविधियों का पता लगाने में सक्षम।

उपग्रह निगरानी: रीयल-टाइम इमेजरी और जहाज ट्रैकिंग।

एआईएस (ऑटोमैटिक आइडेंटिफिकेशन सिस्टम): जहाजों की पहचान और गति पर नजर।

ड्रोन और यूएवी: मानवरहित विमान समुद्री क्षेत्रों में गश्त करते हैं।

बता दें कि यह तकनीक भारत को हिंद महासागर, अरब सागर, और दक्षिण चीन सागर में अवैध मछली पकड़ने, तस्करी, और चीनी/पाकिस्तानी नौसैनिक गतिविधियों पर नजर रखने में मदद करेगी।

पाकिस्तान और चीन के लिए क्यों है चिंता का विषय?

यह तकनीक भारत को विशेष रूप से पाकिस्तान और चीन की संदिग्ध समुद्री गतिविधियों पर नजर रखने में मदद करेगी। समुद्री सुरक्षा विशेषज्ञ कमोडोर अनिल जैन (सेवानिवृत्त) बताते हैं कि "इससे भारत को पाकिस्तानी आतंकियों के समुद्री मार्ग से घुसपैठ और चीन की समुद्री गतिविधियों पर बेहतर नियंत्रण मिलेगा"।

यह तकनीक विशेष रूप से उन छोटी नावों को भी ट्रैक कर सकती है जिनका उपयोग अक्सर आतंकवादी घुसपैठ के लिए किया जाता है, जैसा कि 26/11 मुंबई हमलों में देखा गया था। इसके अलावा, यह चीन की 'मरीन मिलिशिया' की गतिविधियों पर भी नजर रखने में मदद करेगा जो भारतीय समुद्री क्षेत्र में अक्सर अवैध रूप से प्रवेश करती है।

पहलगाम हमले के बाद भारत की बढ़ती सैन्य तैयारियां

यह सौदा उस समय हुआ है जब भारत पहलगाम आतंकी हमले के बाद अपनी सुरक्षा व्यवस्था को और मजबूत कर रहा है। NIA की प्रारंभिक जांच में पता चला है कि इस हमले में पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई और पाकिस्तानी सेना का सीधा हाथ था। अमेरिकी रक्षा मंत्री पीट हेगसेथ ने हाल ही में भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से बातचीत में भारत के आत्मरक्षा के अधिकार का समर्थन किया है। इस तकनीक से लैस होने के बाद भारत न केवल समुद्री आतंकवाद से निपटने में सक्षम होगा बल्कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक मजबूत सुरक्षा साझेदार के रूप में उभरेगा। इस सौदे से अमेरिका-भारत रणनीतिक साझेदारी को भी नई ऊर्जा मिलेगी और यह हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने में मददगार साबित होगा।

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