ऑपरेशन सिंदूर से मिली सीख: सस्ते ड्रोंस के आगे S–400 जैसी तकनीक घाटे का सौदा! C-RAM जैसे सिस्टम की मांग कर क्या बोले एक्सपर्ट्स?
ऑपरेशन सिंदूर ने पाकिस्तान को सैन्य तौर पर तो धूल चटाई ही, लेकिन इस ऑपरेशन ने भारत को एक बड़ी चेतावनी भी दी है। ड्रोन वॉरफेयर का खतरा! जब भारत के एस-400 और ब्रह्मोस मिसाइलों ने पाकिस्तानी एयरफोर्स के एफ-18 और जे-17 जैसे फाइटर जेट्स को ध्वस्त कर दिया, तो पाकिस्तान ने तुर्की और चीन निर्मित ड्रोन्स से जवाबी हमले किए। हैरानी की बात यह रही कि भारत के दुनिया के सबसे एडवांस्ड एयर डिफेंस सिस्टम एस-400 भी इन छोटे-छोटे ड्रोन्स को रोकने में नाकाम रहे! अब रक्षा विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि अगर भारत ने तुरंत C-RAM (काउंटर-रॉकेट, आर्टिलरी एंड मोर्टार) सिस्टम विकसित नहीं किया, तो आने वाले युद्धों में यह कमजोरी घातक साबित हो सकती है।
ड्रोन्स के आगे क्यों बेअसर रहा S–400 ?
एस-400 को दुनिया का सबसे खतरनाक एयर डिफेंस सिस्टम माना जाता है, जो 400 किमी दूर से आने वाली मिसाइलों और स्टील्थ फाइटर जेट्स को भी मार गिरा सकता है। लेकिन, ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान ने जिस तरह कम ऊंचाई वाले ड्रोन्स का इस्तेमाल किया, उसे एस-400 डिटेक्ट ही नहीं कर पाया!
विशेषज्ञों के मुताबिक, एस-400 और आकाश जैसे सिस्टम बड़े हवाई खतरों के लिए डिजाइन किए गए हैं, जबकि ड्रोन्स छोटे, तेज और लो-अल्टीट्यूड पर उड़ते हैं, जिन्हें रडार में पकड़ना मुश्किल होता है। 2021 में जम्मू एयरपोर्ट पर हुए ड्रोन हमले ने भी यही चेतावनी दी थी, लेकिन ऑपरेशन सिंदूर ने इस खतरे को और गंभीर बना दिया है।
पाकिस्तान ने कैसे बनाया ड्रोन्स को नया हथियार?
ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान ने तुर्की के बायरक्टर TB2 और चीन के विंग लूंग-2 ड्रोन्स का भारी इस्तेमाल किया। ये ड्रोन्स न सिर्फ सस्ते हैं, बल्कि इन्हें ऑपरेट करना भी आसान है। पाकिस्तानी सेना ने इन ड्रोन्स को भारतीय सीमा के पास छुपाकर रखा और रात के अंधेरे में इन्हें भारतीय सैन्य ठिकानों पर हमले के लिए छोड़ा। भारतीय सैनिकों ने एयर डिफेंस गन से कई ड्रोन्स को मार गिराया, लेकिन यह तरीका पूरी तरह विश्वसनीय नहीं है। विशेषज्ञों का कहना है कि पाकिस्तान अब ड्रोन्स को स्वार्म टेक्नोलॉजी (झुंड बनाकर हमला) के साथ इस्तेमाल कर सकता है, जिससे खतरा और बढ़ जाएगा।
क्या है C-RAM सिस्टम?
C-RAM सिस्टम वह तकनीक है जिसने इजरायल के आयरन डोम को दुनिया का सबसे विश्वसनीय एयर डिफेंस बना दिया। यह सिस्टम रॉकेट, आर्टिलरी शेल, मोर्टार और ड्रोन जैसे लो-फ्लाइंग थ्रेट्स को सेकंडों में डिटेक्ट करके नष्ट कर देता है।
अमेरिकी फैलेक्स C-RAM और इजरायली आयरन बीम जैसे सिस्टम पहले ही यमन और यूक्रेन-रूस युद्ध में अपनी क्षमता साबित कर चुके हैं। भारत को अब ऐसा ही एक सिस्टम विकसित करना होगा, जो एंटी-ड्रोन गन, लेजर वेपन्स और AI-बेस्ड रडार से लैस हो। IDRW की रिपोर्ट के मुताबिक, DRDO पहले से ही एक स्वदेशी C-RAM सिस्टम पर काम कर रहा है, लेकिन ऑपरेशन सिंदूर के बाद इसकी गति बढ़ाने की जरूरत है।
स्वदेशी एंटी-ड्रोन तकनीक पर कितना काम हुआ?
भारत ने ड्रोन खतरे को लेकर पहले ही कुछ कदम उठाए हैं:
- DRDO ने ड्रोन डिटेक्शन और न्यूट्रलाइजेशन सिस्टम विकसित किया है, जिसका इस्तेमाल 2022 में जम्मू-कश्मीर में किया गया।
- इंडियन आर्मी ने इजरायल से स्काईलॉक एंटी-ड्रोन सिस्टम खरीदा है, जो 3.5 किमी की रेंज में ड्रोन्स को जाम कर सकता है।
- रक्षा मंत्रालय ने 10,000 करोड़ रुपये की लागत से स्वदेशी C-RAM सिस्टम बनाने की योजना बनाई है।
लेकिन, विशेषज्ञों का मानना है कि अभी ये प्रयास पर्याप्त नहीं हैं। भारत को अमेरिका और इजरायल की तरह मल्टी-लेयर डिफेंस सिस्टम बनाना होगा, जिसमें लेजर वेपन्स, इलेक्ट्रॉनिक जैमिंग और AI-बेस्ड ड्रोन हंटर्स शामिल हों।
क्या भारत ड्रोन वॉरफेयर के लिए तैयार है?
ऑपरेशन सिंदूर ने साबित कर दिया कि आधुनिक युद्ध अब सिर्फ जेट्स और मिसाइलों तक सीमित नहीं है। ड्रोन्स ने युद्ध के नियम बदल दिए हैं, और भारत को अब इस नए खतरे के लिए तैयार रहना होगा। अगर भारत ने C-RAM सिस्टम, स्वदेशी एंटी-ड्रोन तकनीक और साइबर वॉरफेयर क्षमताओं पर जल्द काम नहीं किया, तो भविष्य में पाकिस्तान और चीन के लिए ड्रोन हमले एक बड़ा हथियार बन सकते हैं। फिलहाल, भारतीय सेना ने ड्रोन खतरे को गंभीरता से ले लिया है। अब देखना होगा कब तक इस तकनीक को हासिल किया जाएगा।
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