भारत-पाक तनाव के बीच विदेशी निवेशकों ने जताया भरोसा, शेयर बाजार में डाले 14,000 करोड़ रुपये
जहां एक ओर भारत-पाकिस्तान सीमा पर स्थिति तनावपूर्ण बनी रही, वहीं दूसरी ओर विदेशी निवेशकों ने भारतीय शेयर बाजार में जबरदस्त भरोसा दिखाया। भारत के सैन्य ऑपरेशन ‘सिंदूर’ के चलते देश की सीमाओं पर भले ही गरमाहट थी, लेकिन आर्थिक मोर्चे पर भारत की तस्वीर पूरी तरह अलग दिखी — आत्मविश्वास से भरी और निवेश के लिए तैयार।
विदेशी निवेशकों का दमदार दांव
मई महीने की शुरुआत से अब तक विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) ने भारतीय शेयर बाजार में ₹14,167 करोड़ रुपये का भारी-भरकम निवेश किया है। ये आंकड़े तब सामने आए हैं जब देश ऑपरेशन सिंदूर जैसी बड़ी सैन्य कार्रवाई में व्यस्त था और पाकिस्तान के साथ तनाव चरम पर था। इसके बावजूद भारत की आर्थिक स्थिरता और बाज़ार की बुनियादी ताकत ने वैश्विक निवेशकों को आकर्षित किया।
दुनिया चिंतित, पर भारत में निवेश जारी
पूरी दुनिया में भारत-पाकिस्तान तनाव को लेकर चिंता ज़ाहिर की जा रही थी। लेकिन भारत ने जिस संयम और रणनीति के साथ हालात को संभाला, उसने निवेशकों का भरोसा बनाए रखा। नतीजतन, जब भारत आतंक के खिलाफ मोर्चा संभाले हुए था, तब दुनिया भर से डॉलर भारत की अर्थव्यवस्था में निवेश हो रहे थे।
आंकड़ों की जुबानी
- अप्रैल 2025 में एफपीआई निवेश: ₹4,223 करोड़
- जनवरी से मार्च के बीच निकासी: ₹1 लाख करोड़ से ज्यादा
- जनवरी: ₹78,027 करोड़ की निकासी
- फरवरी: ₹34,574 करोड़ की निकासी
- मार्च: ₹3,973 करोड़ की निकासी
- मई की शुरुआत में निवेश: ₹14,167 करोड़
हालांकि 9 मई को भारत-पाक विवाद के फिर से उभरने के बाद निवेशकों ने थोड़ी सतर्कता दिखाई और ₹3,798 करोड़ के शेयर बेचे, लेकिन इससे पहले लगातार 16 कारोबारी सत्रों में ₹48,533 करोड़ की जोरदार खरीदारी की गई।
जानकारों की राय
फाइनेंशियल एक्सपर्ट्स का मानना है कि भारत की मजबूत GDP ग्रोथ, घटती महंगाई और संभावित ब्याज दर में कटौती, विदेशी निवेशकों को भारत की ओर खींच रही है। साथ ही, डॉलर में कमजोरी और अमेरिका-चीन की आर्थिक सुस्ती भी भारत के पक्ष में जा रही है। भारत-अमेरिका के बीच संभावित व्यापार समझौता, रुपया मजबूत होना और बड़ी कंपनियों के तगड़े तिमाही नतीजे विदेशी निवेशकों के भरोसे को और पुख्ता कर रहे हैं।
दुनिया को बताया, राजनीतिक और सैन्य अस्थिरता के बीच भी है स्थिरता
सीमा पर गोलीबारी और कूटनीतिक तनातनी के बीच भारत की अर्थव्यवस्था ने दुनिया को दिखा दिया कि वह राजनीतिक और सैन्य अस्थिरता के बीच भी स्थिर रह सकती है। जहां सरकार और सेना देश की रक्षा में जुटी रही, वहीं निवेशकों ने भारत की अर्थव्यवस्था में विश्वास जताया — और इसी भरोसे के दम पर भारत की तिजोरी में आए 14 हजार करोड़ रुपये।
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