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अब 'अंधा' नहीं है देश का कानून, 'न्याय की देवी' की आखों पर बंधी पट्टी हटाई गई

सुप्रीम कोर्ट में स्थापित 'न्याय की देवी' की प्रतिमा में एक महत्वपूर्ण बदलाव किया गया है। पहले प्रतिमा को अंधा दिखाया जाता था, जिसकी आंखों पर पट्टी बंधी हुई थी और एक हाथ में तलवार थी। लेकिन अब नई प्रतिमा की आंखों पर से पट्टी हटा दी गई है।
10:24 AM Oct 17, 2024 IST | Shiwani Singh

पहले 'न्याय की देवी' की प्रतिमा की आंखों पर पट्टी बंधी होती थी। लेकिन अब प्रतिमा की आखों पर लगी पट्टी हटा दी गई है। हाथ पर तलवार की जगह संविधान की किताब को जगह दी गई। यह बदलाव चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने करवाया है।

जानकारी के मुताबिक 'न्याय की देवी' कि यह नई प्रतिमा पिछले साल CJI डीवाई चंद्रचूड़ के कहने पर बनवाई गई थी। फिर इसे सुप्रीम कोर्ट में जजों की लाइब्रेरी में लगवाया गया। लेकिन अब लगभग एक साल बाद 'न्याय की देवी' की नए रंग रूप की प्रतिमा की तस्वीरें वायरल हो रही हैं।

क्यों हटाई गई पट्टी

'न्याय की देवी' की प्रतिमा की आंखों पर पहले पट्टी बंधी थी। लेकिन नई प्रतिमा से इस पट्टी को हटा दिया गया है, जिसका मतलब ये दिखाना है कि देश का कानून अब अंधा नहीं है। वहीं, प्रतिमा के एक हाथ में दिखने वाली तलवार की जगह, अब संविधान की किताब को रखा गया है। पहले मौजूद तलवार यह दर्शाती थी कि कानून जूर्म करने वालों को सजा देता है। लेकिन अब कानून संविधान के दायरे में रह कर सजा देगा।

हालांकि 'न्याय की देवी' की पुरानी प्रतिमा के एक हाथ में तराजू था, जो अब भी बरकरार है। तराजू न्याय के संतुलन को दर्शाता है और बताता है कि कानून दोनों पक्षों की बात सुनकर न्याय देता है।

क्यों बदली गई प्रतिमा?

आपको बता दें कि कुछ समय पहले ही अंग्रेजों के कानून को बदल दिया गया है। अदालतों ने आईपीसी की जगह 'भारती न्याय संहिता' को अपनाया है। जिसका मकसद ब्रिटिश काल को पीछे छोड़ते हुए नए समय और परिस्थिती के हिसाब से आगे बढ़ना है।

वहीं CJI चंद्रचूड़ का ऐसा मानना था कि हमे अंग्रेजी विरासत से अब आगे निकलना होगा और यह बताना होगा की कानून कभी अंधा नहीं होता, वो सबको समान रूप से देखता है। यही वजह है कि अदालत में लगी 'न्याय की देवी' की प्रतिमा को बदला गया है।

क्या है मूर्ति का इतिहास

भारतीय अदालतों में दिखने वाली 'न्याय की देवी' असल में यूनान की देवी है, जिसका नाम 'जस्टिया' है। उन्हीं के नाम से 'जस्टिस' शब्द आया। बता दें कि 17वीं शताब्दी में एक अंग्रेज अफसर पहली बार इस प्रतिमा को भारत लेकर आए थे। जिसके बाद 18वीं शताब्दी में ब्रिटिश राज में 'न्याय की देवी' की प्रतिमा को न्याय के प्रतिक के तौर पर सार्वजनिक रूप से इस्तेमाल किया जाने लगा, जो आज तक चला आ रहा है।

ये भी पढ़ेंः पराली मामला: सुप्रीम कोर्ट की पंजाब-हरियाणा को फटकार, पूछा-'कार्रवाई क्यों नहीं की गई'

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