शून्य क्यों है शिव का प्रतीक


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शिव को 'शून्य' के रूप में क्यों जाना जाता है? इस कहानी में छिपा है सृष्टि का सबसे गहरा रहस्य।

क्या है शून्य का अर्थ?

शून्य का मतलब खालीपन, पर यह खालीपन केवल खोखला नहीं है। यह सृष्टि की उत्पत्ति और अंत का प्रतीक है।

शिव और शून्य का संबंध

शिव को 'निराकार' कहा गया है। वे समय, स्थान और रूप से परे हैं। वे 'शून्यता' के प्रतीक हैं, जहां सबकुछ विलीन हो जाता है।

शून्य और सृष्टि की उत्पत्ति

शून्य वह स्थान है जहां से सृष्टि की शुरुआत होती है। शिव इसी शून्यता का प्रतिनिधित्व करते हैं, जहां सबकुछ शांत और स्थिर है।

मेडिटेशन और शून्य का महत्व

ध्यान करते समय शून्य की स्थिति में पहुंचने का प्रयास किया जाता है। यह स्थिति मन की शांति और आत्मज्ञान की ओर ले जाती है।

शून्य से परे शिव की महिमा

शिव का शून्य रूप केवल समाप्ति का नहीं, बल्कि एक नई शुरुआत का भी प्रतीक है।

शून्यता हमें यह सिखाती है कि जीवन में हर चीज अस्थाई है। शिव का संदेश है—निर्विकार रहो और अपने भीतर शांति खोजो।

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